फिर हुस्न पे दुनिया मिटने लगी
फिर जिस्म से जाँ ये छूटने लगी
कोई पूछे न अब दिन रात मेरे
यादों में ही घड़ियां कटने लगी
जो भीड़ में होके रहे तन्हा
खुशी का मिला न जिन्हें लम्हा
हाथों की लकीरें मिटने लगी
यादों में ही घड़ियां कटने लगी
न ख्वाब मिले न नींद रही
नजर भी मंजिल से हटने लगी
रूबरू न सही ख्वाबों में ही बसर
रहे बस खुमारी रहे उनका असर
जनाजे में भीड़ जुटने लगी
रूहों के साथ जिंदगी कटने लगी
थी कभी जमीं से फलक तक
दुनिया मेरी सिमटने लगी
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ये आखिरी नहीं अभी तो शुरुआत है ।।
मूर्ख को भाव देना
मुर्दे को घाव देना
मूछों को ताव देना
चलते को पांव देना
दोषी को छाँव देना
ये सब भारत में ही सम्भव है ।-
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम बोलों ।
जय श्री श्याम जय श्री श्याम जय श्री श्याम बोलों ।।
एक मिला है जीवन जी लो प्रेम भक्ति और भाव से
श्वास चले ये तन में जब तक रहो तभी तक छाँव में
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम बोलों ।
जय श्री श्याम जय श्री श्याम जय श्री श्याम बोलों ।।
कण कण में है वास प्रभु का रूप अनेकों निखरे
खोने का क्यों शोक करें क्या लेकर हम उतरे
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम बोलों ।
जय श्री श्याम जय श्री श्याम जय श्री श्याम बोलों ।।
मन की इच्छा कभी न मरती तन निशदिन ही मरता
सूरज तारे अडिग रहे सब जल का बादल झरता
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम बोलों ।
जय श्री श्याम जय श्री श्याम जय श्री श्याम बोलों ।।
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जो लोग सपनों के पीछे दौड़ते हैं...
ऐसे लोग अपनों को भी पीछे छोड़ देते हैं ।-
भारत की बौद्धिक क्षमता का कोई सानी नहीं ।
भारत एक महाग्रंथ है कोई लघु कहानी नहीं ।।-
श्री हरि विष्णु श्री नारायण
प्रेम भाव से बोलों रे ।
प्रेम भक्ति के पथ पर चलकर
द्वार हृदय के खोलों रे ।।
राम कृष्ण के श्री अवतारी
भक्तों के मन भाये
प्रेम दया करुणा के सागर
जीव जगत में आये
क्या मेरा क्या तेरा बंधु
पुष्प की भांति खिलो रे ।
प्रेम भक्ति के पथ पर चलकर
द्वार हृदय के खोलों रे ।।
क्या जाना इस तन से प्राणी
प्राण पखेरू उड़ जाना है
न रहता कोई भोग का भोगी
क्या खोना क्या पाना है
समय रुके न किसी के रोके
कल पर कुछ मत टालो रे ।
प्रेम भक्ति के पथ पर चलकर
द्वार हृदय के खोलों रे ।।
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तकलीफ उस वक्त बहुत ज्यादा होती है....
जब समझने वाला कोई नहीं
और समझाने वाले हजार होते हैं ।-
सहूलियत के हिसाब से लोगों से मिला कीजिए जनाब ।
क्योंकि लोग जरूरत के वक्त ही याद किया करते हैं ।।-
कब समझा है और कौन समझेगा मुझे ।
कोई थप्पड़ तो कोई ताने मारेगा मुझे ।।
दुनिया का दस्तूर निबाह करना पड़ता है ।
मैं इक शाख ए गुल हूँ कौन तोड़ेगा मुझे ।।
कब तक दूर दूर रहूँगा बेदर्द जहान से ।
टूटा हुआ इक तार हूँ कौन जोड़ेगा मुझे ।।
समंदर की चाह न की कभी मैंने फिर कभी ।
बहता हुआ दरिया हूँ कौन मोड़ेगा मुझे ।।
दहशतगर्द भीड़ में मैं भी खड़ा रह गया ।
चाहे मजलूम सही लेकिन कौन छोड़ेगा मुझे ।।
किसी हरे दरख़्त की तरह खड़ा हूँ जंगल में ।
मैं हूँ इंतजार में आके कौन झिंझोड़ेगा मुझे ।।
लहू है शबाब पर जिस्म है गदराया सा ।
मुतमईन हूँ कोई तो फिर निचोड़ेगा मुझे ।।-
अब के हुई जिनकी उदासियों से यारी ।
उन्हें भी करनी पड़ी तन्हाईयों से यारी ।।
चल पड़े पांव जो मोहब्बत के सफर में ।
यक़ीकन होगी उनकी रुसवाईयों से यारी ।।
मोहब्बत में जो ठुकराए गए हर दफा ।
कर लेते हैं वो यहाँ परछाइयों से यारी ।।
मोहब्बत की डोली या जनाजे पे सेहरा ।
दोनों ही सूरत में होगी शहनाईयों से यारी ।।-