तुम्हीं हो हकीकत तसव्वुर भी तुम हो जीने की वजह भी दिल में जो तुम हो तेरे बगैर जानेमन ना हैं जीने की राहें नहीं कोई मंजिल है ना हीं कोई सफ़र है तन्हा सर्द रातों में जलती हुई अलाव हो तप्त हृदय में तुम बहती शीतल बयार हो तुमसे ही हंसी फबे तुमसे ही ख़्वाब सजे तुम जो रूठ गये तो मानों की सब छूट गये
सफ़र की शुरुआत यक़ीनन अच्छी थी अरमानों से भरी रात भी अच्छी थी उनके लबों से निकलती हर बात अच्छी थी पर कुछ तो था जो बेमेल सा अनगढ़ था हमारे दरम्यान मेरे जज़्बात में वो माशूक थी , उनके नज़र में मैं बेहतरीन दोस्त.......