Shridhar Krishnarth   (कृष्णार्थ)
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I love to follow .. varieties of thought , colorful.. colorless.. love ...languishing...
Joined 7 July 2017


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19 APR AT 11:12

तुम्हीं हो हकीकत
तसव्वुर भी तुम हो
जीने की वजह भी
दिल में जो तुम हो
तेरे बगैर जानेमन
ना हैं जीने की राहें
नहीं कोई मंजिल है
ना हीं कोई सफ़र है
तन्हा सर्द रातों में
जलती हुई अलाव हो
तप्त हृदय में तुम
बहती शीतल बयार हो
तुमसे ही हंसी फबे
तुमसे ही ख़्वाब सजे
तुम जो रूठ गये तो
मानों की सब छूट गये



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13 FEB 2020 AT 6:16

देखती रही ये आंखें
पथराती तो कभी
आंसुओ से धुंधलाती

पर क्या करती
कुछ नहीं कर सकी
कुछ नहीं पहुंच सकी
मेरी खामोशियों , मेरी चित्कार।

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21 NOV 2019 AT 5:56

सफ़र की शुरुआत यक़ीनन
अच्छी थी
अरमानों से भरी रात भी
अच्छी थी
उनके लबों से निकलती हर बात
अच्छी थी
पर कुछ तो था जो बेमेल सा अनगढ़
था हमारे दरम्यान
मेरे जज़्बात में वो माशूक थी , उनके नज़र में
मैं बेहतरीन दोस्त.......


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7 SEP 2019 AT 17:36

अजब का है शमां
अजब है सब दास्तां
परवाने के प्यार में
जल रही ये शमअ्
पहले रूह की थी ख़ोज
अब जिस्म की नुमाइश है

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30 AUG 2019 AT 23:40

उसके रंगहीन होते वजूद को
जो कभी सतरंगी हुआ करते थे
आज सन्नाटे के शाये में जो खड़ा है
कभी उससे जलसे खुशवगार होते थे

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30 AUG 2019 AT 23:28

मैं कैसे और कहां हूं
उसको पता नहीं
वो कैसा और कहां है
मुझे पता नहीं
इक गुज़ारिश ही तो है
वक्त से कि..
कहीं दिखाई तो दें वो
हमें मिलाओ तो कभी..

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18 JUN 2019 AT 20:45

मेरा वजूद ही
मेरा हमसाया है
कभी फलक़ पे तो
कभी जमीं पे नज़र आया है

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3 JUN 2019 AT 5:30

कितने चेहरे
न जाने कितनी ॴखेऺ
आवाजें भी अनगिनत
कहकहे थे या
सिसकियां..
कहां समझ पाता है कोई
अन्तर्मन की अनुभूतियां..

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11 APR 2019 AT 19:56

आइए ना कभी
तसब्बुर में ही सही
लम्हाते हसीं
बनकर...
इक बार .. नज़र में
गुजरिए तो सही.
पल दो पल के लिए
मेरी आरज़ू बनकर
▪▪

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8 DEC 2018 AT 10:33

कोई आ रहा है करीब
या
कोई जा रहा है दूर

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