ताल -तलैया सूख गये सब, तेज तपन की रीत लिखूं!
पत्ता नहीं खड़कता दिखता,क्यों मौसम को प्रीत लिखूं !
लोग पड़े हैं दुबके घर में ,लू पर सबकी जीत लिखूं!
बरस रहा अंगार धरा पर, ऐसे में क्या गीत लिखूं!
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मन में ठान इरादा कोई ,पथ पर बढ़ते जायें!
सुरभित सदा रहेगा जीवन,कुछ तो गढ़ते जायें!
माना मंजिल दूर सही पर,उससे क्या घबराना,
रहे मनोबल साथ हमेशा,पर्वत चढ़ते जायें!
विपदाएँ आतीं हैं आयें,नहीं हार हम माने,
छाये जब भी घोर निराशा,तम से लड़ते जायें!
इस पथ पर तो सदा मिलेंगे,कई अजनबी साथी,
एक ध्येय लेकर चलना है,नहीं झगड़ते जायें!
रस्ते की हरियाली हमको,प्रेरित सदा करेगी,
धरा वधू को जी भर देखें,साथ न उड़ते जायें!
बना रहे विश्वास आपसी,इस बदले मौसम में,
टूट गया जो मन का दर्पण,फिर से मढ़ते जायें!
नये क्षितिज में विचर रहा है, नये वर्ष का सूरज,
नयी रोशनी सबको देगा,जब भी मुड़ते जायें!
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आँगन के कोने मेें...
एक किरण कौंध उठी
चुपके से आँगन के कोने में
सूरज ने लीपा अँजोर!!
देख-देख राशिफल
सँईता है मानस के कचरों को
झौहों में भर-भरकर
थोप दिया किसने
यह कपसीला भोर!!
उजली है दिशा-दिशा
निर्मित हैं द्वार
निर्निमेषित नयना हैं
स्वप्निल साकार
अँसुयायी यामिनी
ज्यों रेशम की डोर!!
सूरज ने लीपा अंजोर.....!!
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यमुना तट पर कान्हा आये ,शीत शरद की रात!
खिला चांद है नीले नभ में, करे अमिय बरसात!
कृष्ण-भक्ति में लीन गोपियां गयीं स्वयं को भूल,
महामिलन था परमात्मा से, हुई अलौकिक बात!-
बेटी हूं कहकर मुझसे मां,कभी नहीं तुम करना भेद!
नहीं किसी बेटे से कम हूं ,जन जन को देना संदेश!
शिक्षा पाकर खूब बढ़ूं मैं ,अपना जीवन स्वयं गढ़ूं,
दे इतना आशीष मुझे मां , संघर्षों से न कभी डरूं!-
दर्द सब पीते रहे
जख्म हर सीते रहे
इस तरह ए जिंदगी
हम तुझे जीते रहे-
नारी..
दर-दर भटकी
पीड़ाओं की
राम-कहानी है!
उथली नदियां
कब कहतीं हैं,
मुझमें
पानी है!
जीत रही हर
जंग
जगत में,
दृढ़ विश्वास लिये,
देगा ये
इतिहास
गवाही,
नारी!
तू अभिमानी है!-
**लौट आ बचपन**
एक दिन नानी ने मेरी सुनाई थी कहानी
चन्द्रमा में एक बुढ़िया बैठकर कातती है सूत
पर किताबों में पढ़ा था खाइयाँ हैं
लौट आ बचपन तुझे दुहाइयाँ है !!
फिर कहानी तितलियों की आसमां में सैर करती
उन परियों की थीं सुनातीं बैठकर और
मैं सुनता रहा चुपचाप अब याद आता है
मुझे वह बचपन जब सदा मैं सोचता था
उड़ चलूँगा एक दिन मैं आसमां में
सैर कर आऊँ वहाँ की बस्तियाँ
पर मुझे नानी सुलाती और सुनाती लोरियाँ
लौट आ बचपन तुझे दुहाइयाँ है!!
अब यादें धुँधली पड़ गयीं हैं उन दिनों की
जिन दिनों में तीन चक्के की
सवारी पर बिठा नन्ही बहन को
घूमता था मैं सड़क पर बेखबर
और फिर आवाज आती
लाल आना लौट जल्दी हो रही है साँझ
अब ना रहा वह बचपन और ना रही कहानियाँ
लौट आ बचपन तुझे दुहाइयाँ है!!
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