रोज़ तेरी आँखों में जल्दी आऊँगी ज़िन्दगी की कड़वाहट को भुलाऊँगी सपनों की दुनिया की सैर कराऊँगी अब देर रात तक तुझे नहीं सताऊँगी रात का वादा था मुझसे..... लेकिन रात ने कहा मुझसे..... औरों की तरह वादों को तोड़ जाऊँगी
मेरी कड़वाहट का मर्म तुझे नहीं समझ आएगा मेरे मरने के बाद तू भी मुझे हिटलर ही बुलाएगा जाने दें उन भावों को, समझ गया तो.... तू भी मेरी तरह सुकून से कभी जी नहीं पाएगा तेरा हर इल्ज़ाम सिर माथे पर गहने सा सज जाएगा अब क्या कहूँ! देखना तू कुछ दिनों में भूल जाएगा
ज़िन्दगी की कड़वाहट को भुलाना आसान बहुत लगता है अपनी आत्मा को बुराई से बचाना आसान बहुत लगता है बेवजाह पीड़ा के साथ मुस्कुराना आसान बहुत लगता है नासमझ को अपनी बात समझाना आसान बहुत लगता है तुम्हारे दिए श्रापों के साथ मेरा जीना आसान बहुत लगता है
कौन नहीं मज़दूर यहाँ पर.... जिसने भावों की गठरी ना उठाई हो जिसने प्रेम की चक्की ना चलाई हो जिसने प्यार की चाट ना लगाई हो जिसने वादों का ठेला ना चलाया हो जिसने मोहब्बत की दुकान ना सजाई हो सोच-समझकर मज़दूरी करना यहाँ पर.... लोगों ने इसमें अपनी जीवन-पूँजी गँवाई हैं इश्क़ की मज़दूरी में अपनी खुशियाँ लुटाई हैं
उसकी चाहत के लिए खुद को कितना सँवारा अपने रूप को भी निखारा उसको फिर भी लगे अवारा उसने मेरे वजूद को ही नकारा मेरे दिल ने जीतकर भी उसे हारा अब नहीं लूँगी दूसरे का सहारा
रात हसरत लिए आती थी हमें फूलों सा महकाती थी हममें अल्हड़ता भर जाती थी परी लोक की सैर कराती थी हसरतों वाली रात यथार्थ में... हर रात मायूस कर जाती थी हमें खून के आँसू रुलाती थी सपनों तक को मसल जाती थी वो हसरतें सारी रात सताती थीं
हमारा अधूरापन अब हमें ना सताएगा जो छोड़ दिया मैंने वो अब याद नहीं आएगा तेरे कंधे का सहारा भूलकर भी दिल ना चाहेगा प्यार के नाम पर हमारे भावों को कोई ना ठग पाएगा जीवन के कठिन समय में ईश्वर बाहर निकलने का रास्ता दिखाएगा
जहाँ से चले थे वहीं आ गए हैं एक दर्द से निकले अब दूसरे अवसाद छा गए हैं बचाया रिश्तों से खुद को अब प्रेम की गिरफ्त में आ गए हैं किसी ने लूटा शरीर को अब मन को लूटने वाले आ गए हैं
क्यों बार-बार करनी तकरार समझ नहीं आती, हुई बातें बेकार अब खुद पर ध्यान दो, मेरे यार! कम नहीं जहाँ में प्यार एक छोड़ो मिलते हैं हज़ार बस खुद पर करो थोड़ा सा एतबार सारी मुश्किलें कर लोगे आसानी से पार