सुनो पंडिताइन !
इस धूप वाली दोपहरी में
क्या तुम मेरी छाँव में रहोगी?
इन बड़े शहरों से दूर
क्या तुम मेरे गांव में रहोगी?-
Banarasiya
खिड़की के पास लगी कुर्सी,
भोर का समय,
बादलो की गड़गड़ाहट,
मौसम की पहली बारिश,
मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू,
हाथों में गरमा-गरम चाय,
प्लेट में रखी प्याज की पकौड़ी,
साथ मे एक ख़ूबसूरत उपन्यास।
जन्नत।-
हम छोटी कश्ती वाले है
तुम अलकनंदा वाली क्रूज़ प्रिये।
हम चाय के नशे में डूबने वाले
तुम रहती हाई ऑन booze प्रिये ।।-
ये तो रूहानी इश्क़ हो गया
अब बताइए हमे
हम दवा लें, मयखाने जाएं या मर जाएं?-
अब कुछ बातें तब होंगी
जब तुम यहां होगी
बनारस में
शाम के समय
तुलसी घाट पे
कल्लू के हाथ की बनी
अदरक वाली कड़क चाय
और वेज मैगी के साथ
पतली सी सीढ़ियों पे
सबसे ऊपर साथ बैठी होगी
और निहारती रहोगी
गंगा के इस छोर पे मंदिरों के पीछे
पेड़ों के ओट में
सूरज को छिपते हुए,
जब तुम्हारे बंधे बालों से निकले लट
बेखयाली में तुम्हारे गालों को छुएंगे
और हल्के हल्के फूंक मारते हुए
चाय की चुस्कियों में डूब रही होगी तुम
तब होंगी कुछ दिल की बातें।
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उसे भुलाने को मयखाने का बहाना बनाया
फकत बात मयखाने में उसी की करते है।-
And those who are going outside and claiming that all this corona thing is overhyped and I'm safe -
सतयुग में इसी क्रिया की निन्दा की गई है
सुधर जाईये वरना सिधर जाएंगे।-