Shreyansh Shivam  
351 Followers · 350 Following

read more
Joined 26 November 2018


read more
Joined 26 November 2018
19 MAR AT 4:58

हालात की वजह से कुछ यूं मजबूर होता गया।
जो भी मेरे करीब था, उससे दूर होता गया।।

लोगों ने भरपूर कोशिश की उसे बदनाम करने की
किंतु,जो किरदार बेहतरीन था,वो मशहूर होता गया।।

जिसे इल्म नहीं इस कायनात के आयाम का ।
वो शख़्स खुद -ब-खुद मगरूर होता गया।।

वो नहीं झेल पाया है अक्सर नाकामी के दंश को ।
जिसे अपनी कामयाबी पर गुरूर होता गया।।

खौफ के बदौलत जिसने कायम की बादशाहत ।
वो बादशाह दिन-ब-दिन और भी क्रूर होता गया

-


24 FEB AT 17:16

मेरा व्यक्तित्व सादगी के आगोश में है।
मेरा तन नशे में है ,मेरा मन होश में है ।।
(क्रमशः)

-


24 FEB AT 16:49

कभी खुशहाल,कभी गमगीन है ।
ऐ जिन्दगी,तू कितनी हसीन है।।

जैसे - जैसे तू उम्र में बीत रही है ।
तुझे जीने की दिलचस्प रीत रही है।।
तू है कभी मायूस और कभी शौकीन है ।

न जाने कब से जमीं पर तेरा वजूद है ।
इस कायनात से परे भी शायद तू मौजूद है।
तू है कहीं गुमनाम और कहीं नामचीन है ।।

कोशिश है तुझे कामयाब करूं।
खुद का ये पूरा ख्वाब करूं ।।
है तू जैसी भी,मगर, मौत से बेहतरीन है।।

-


2 DEC 2023 AT 15:10

विरह की पीड़ा सह जाने दो ।
नेत्रों से अश्रु बह जाने दो ।।

मैं देवता जैसा पवित्र नहीं हूॅं।
राम जैसा मैं आदर्श चरित्र नहीं हूॅं।।
हूॅं कला का साधक,मुझे,इसलिए
अपनी अनुभूति कह जाने दो।।
नेत्रों से अश्रु बह जाने दो ।।

दृष्टि जब से गहन हुई है।
कल्पना तब से सघन हुई है।।
कल्याण ना हो जिससे प्राणी का
वैसा वैभव ढ़ह जाने दो ।।
नेत्रों से अश्रु बह जाने दो ।।

महत्व बहुत है जीवन में क्षण का ।
जैसे कि इस सृष्टि में कण का ।।
अल्प मात्रा में ही ,लेकिन,
संवेदना उर में रह जाने दो ।।
नेत्रों से अश्रु बह जाने दो।।

-


23 NOV 2023 AT 12:01

जो द्वार-द्वार भटक रहा ।
जो अन्न की याचना कर रहा ।
वह हर एक याचक कह रहा 
                                   भिक्षां देहि । 
अपने आराध्य के समक्ष ।
जो आराधना में मग्न है ।
आशीष की भावना लिए 
वह हर एक आराधक कह रहा ।
                                        भिक्षां देहि  ।
जिसका लक्ष्य सिद्ध नहीं हुआ है।
 जिसका साधन विफल हो रहा 
सिद्धि की कामना लिए साधना में 
 वो हर साधक कह रहा
                                            भिक्षां देहि  ।
मूल्यवान् श्वेत परिधान में।
निर्धन अर्धनग्न जन के सामने
मत की‌ धारणा लिए 
हर एक शासक कह रहा
                                   भिक्षां देहि  ।
अपूर्ण है जिसकी उपासना
प्रबल है जिसमें वासना 
अध्यात्म की तृष्णा लिए
वो हर उपासक कह रहा
                               । भिक्षां देहि   ।

-


1 NOV 2023 AT 10:17

विस्मृत करने योग्य नहीं है।
देखे जो सुंदर दृश्य नयन से ।।
धरा-गगन के,निश्छल बचपन के ,
या फिर हो वो चंचल यौवन के ।।
आदर्श,यथार्थ के अंतराल में,
हो जीवन व्यतीत रहा है।।
जीवन में जो क्षण बीत रहा है।

कठिन है उसे पराजित करना ।
जो प्रतिभा के साथ पला है ।।
जैसे हर वो मानव बृहन्नला है ।
जिसके पास विशिष्ट कला है ।।
है समय का संयोग अनोखा ,
कि, कोई क्षण में हार रहा है
कोई क्षण-क्षण जीत रहा है ।।
जीवन में जो क्षण बीत रहा है।
स्मृतियों का बन गीत रहा है।।

-


14 OCT 2023 AT 0:32

जीवन में जो क्षण बीत रहा है।
स्मृतियों का बन गीत रहा है।।

मिले पथिक बहुत से पथ में ।
कुटिल - नेक कुछ अंजाने से ।।
चूके नहीं कभी वो हमको ।
बहकाने से ,समझाने से ।।
स्वर्णिम रहा है जिसका जीवन,
रोमांचक उसका अतीत रहा है।।

जीवन में जो क्षण बीत रहा है।......(सतत्)

-


6 AUG 2023 AT 12:52

अगर आप होना चाहते हैं
मुझसे परिचित ।
तो , पूछें मेरा परिचय
मेरे परिचितों से ।

आप जान पाएंगे
मुझमें निहित
गुण और दोष ।

-


3 AUG 2023 AT 14:31

कुछ लोग जीवन में इतने तन्हा उदास रहते हैं।
खुशियॉं उनसे दूर रहती है,गम उनके पास रहते हैं।।

उन्हें करना चाहिए अपने संघर्ष पर गुमान ।
जो लोग अपनी नाकामी से निराश रहते हैं।।

बचपन का ही दौर होता है सबसे खुशहाल ।
लोग जवानी से बुढ़ापे तक बदहवास रहते हैं।।

अट्टालिकाओं में निवास करते हैं जो स्वामी।
झोपड़ियों में उन स्वामियों के दास रहते हैं।।

विकसित हो चुकी विलासी मानवीय-सभ्यता में ।
पंछी और जानवर आजकल हताश रहते हैं।।

-


15 JUN 2023 AT 15:18

रे,मानव न करेगा विकल मन तू ।
ले आज अभी से यह प्रण तू ।।

कुटिलों के षड्यंत्रों से लड़कर ।
बनकर एक कुशल धुरंधर ।।
जीतेगा जीवन का रण तू ।

ले आज अभी से यह प्रण तू ।

जब होगी व्यक्तित्व की परीक्षा तेरी ।
जब दुनिया करेगी समीक्षा तेरी ।।
तब बनेगा विशिष्ट,नाकि, साधारण तू ।।

जब कला कर्म में तू संलिप्त रहेगा ।
तब यह संसार तुझे विक्षिप्त कहेगा।।
अपनी प्रज्ञा से,विघ्नों का करेगा निवारण तू ।।

ले आज अभी से यह प्रण तू । (अपूर्ण)

-


Fetching Shreyansh Shivam Quotes