तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ सलामत दिखता है,मुझे मुहब्बत क़े सफ़र में..!
ज़िन्दगी भर बरकरार बनाये रखना,हम ज़ब तलक ज़िन्दा है ज़िन्दगी में..!!-
Ordinary.. 😊
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अपनी ज़िम्मेदारी पर पढ़े ... read more
"आख़िर कैसा है मन"😊
अज़ीब सी उलझन रहतीं है आजकल मन में
कुछ तो खोया है बहुत
प्यारा सा..
उसी क़ो ढूढ़ता रहता है, हरपल मन..!
किसी और से उम्मीद बेमानी है
नज़र क़ो नहीं
दिखता वो शख़्स.
आख़िर उसकी तलाश क्यों करता है मन..!
सलीके से संभाल नहीं
पाया, वो भी यहाँ पर साथ में
हरपल ख़ुद में जंग चलती है,
बेशुमार ग़मो का
मंका हो गया है आजकल अपना मन..!
आख़िर वो शख़्स
अपना नहीं निकला, छोड़ गया
दुनियां बहुत बड़ी लगती है आजकल यहाँ
आख़िर कितना अभी
बेताब है मेरा मन..!
सलीके से निभाना सीखिये, आजकल इन
रिश्तों क़ो भी अब तो यहाँ
कितना बेसुध हो गया, मेरा बेचैन सा मन..!!-
मुहब्बत में महबूब में ही सबकुछ माशूक क़ो नज़र आता है
चाहता है सब कुछ मुक़्क़मल रहें, फ़िर भी खोने का डर रहता है..!
आजकल इक़ तरफ़ा मुहब्बत निभाने का चलन दिख रहा है
मुनाफ़े क़े मुनाफिक़ दुनियाँ है आजकल की, इंसान बदल जाता है..!
रिश्तों में मुक़्क़दर चलता है, काबिलियत नहीं क़ाम आती है
ग़र एक बिछड़ा मुहब्बत क़े सफ़र में, इंसान यहाँ पर हार जाता है..!
संभाल कर रखता है महबूब क़ो,कोई तकलीफ़ न पहुँचने पाये
उसकी मौज़ूदगी हर जगह रहतीं, कुछ क़ो लगता है शक करता है..!
अधिक चाहतें मुहब्बत में, कैद करने क़े मुनाफिक़ लगती है
इंसान इससे परखना कहते है, देख वो इससे निकलना चाहता है..!
एक वक़्त तलक मुहब्बत में इंतज़ार ठीक लगता है इंसान का
वक़्त का दायरा टूटने क़े बाद,देखो खोने का डर ख़त्म हो जाता है..!
आख़िर इल्ज़ाम लगाने से क्या होने वाला,आज़ाद है मुहब्बत
सच में ग़र दोनों तरफ़ से निभायी जाये, खोने का डर नहीं रहता है..!!-
यादों से निकलने क़े ख़ातिर, शराब की सलाह देतें याराने
हमनें पूछा उनको क्या तु भी भूल गया, सभी मुझसे नकारने लगें..!
आजकल होश में कहाँ ज़ाहिर करते है, ग़म अपने दिल का
कुछ तो राहत मिल जायेगी, नशे का सहारा लेते है देख बोलने में..!
कितना डरता है इंसान आजकल यहाँ,मुहब्बत में महबूब से
उसके होते कभी पीने की हिम्मत नहीं, आज मज़बूर है पीने क़ो..!
किसी दवा सी राहत देतीं है शराब, बोलने क़े ख़ातिर यहाँ
कितना सोचता है क्या कहेंगे, मज़बूर है सहारा शराब का लेने क़ो..!
मैखाने आबाद है आजकल, शौक में ही, कहते सुना है हमनें
दिल क़े दर्द कितनों का दिखता,आजकल कितने बेबस है पीने क़ो..!
महबूब क़े साथ उसकी आँखो क़े डूबा रहा,देख ये भी पहले
उनका न होना ज़िन्दगी में कितना बेबस करता है,है अब मैखाने में..!
कितने बर्बाद हुये मुहब्बत क़े नशे में, गिनती नहीं इनकी भी
शराब तो यूं ही बदनाम है ज़माने में, ये नशे में रखती है इंसान क़ो..!
आख़िर कितने मिलते है आजकल ज़माने में शौक क़ो पाले
शराब की आदत पड़ जाती है आजकल,इसको महबूब क़ो भूलने में..!!-
यादों से निकलने क़े ख़ातिर, शराब की सलाह देतें याराने
हमनें पूछा उसक़ो क्या तु भी भूल गया, सभी मुझसे नकारने लगें..!
आजकल होश में कहाँ ज़ाहिर करते है, ग़म अपने दिल का
कुछ तो राहत मिल जायेगी, नशे का सहारा लेते है देख बोलने में..!-
आख़िर किसको चाहत है पुरे जहाँ क़ो ख़ुश देखना
इनको ख़ुद की पड़ी है
आजकल
खुदगर्ज़ी से बहुत मुश्किल है बाहर निकलना..!
ख़्वाब सिर्फ़ देखते है
कुछ बेहतर करने की, ख़ुद ख़ातिर
न जाने कितनी
चाहत है, ज़मा करने की दौलत यहाँ पर
समेटने की फिराक में दिखते है
खूब ढेर सारा हो अपना, देखें बस यह ज़माना..!
कौन है यहाँ
वैराग्य क़े इतर होकर देखता है
पुरा जहाँ खुशहाल भले रहें यहाँ पर भी
सबसे अधिक दौलत अपनी हो, देखें पुरा ज़माना..!
आख़िर अगले पल क्या होगा,
कुछ पता नहीं है
इनको
बस गोदाम भरें रहें हमेशा, ख़ाक हो जाये ज़माना..!
इनके तसस्वुर में ज़मानें का
खौफ़ नहीं है आजकल यहाँ पर
सभी क़ो खरीदने का माद्दा रखते है आजकल
बोलीं लगाते है हर इंसान की,
कितनों क़ो खरीद पाये, मुझे भी एक बार बताना..!!-
"ज़िन्दगी खूबसूरत है"😊
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है आज देखो बारिश क़े मौसम में
कितना सुकून मिलता है दिल क़ो,सहुलियत कहाँ मिलती है कैद में..!
आज़ाद रहो ज़िन्दगी में, कैदखाने से बाहर निकलो मन क़े
परिंदे भी बहुत ख़ुश दिखते है आजकल,देखो अब तो आसमान में..!
जिम्मेदारियों क़ो कैद नहीं कहते, मन का भ्रम है यहाँ पर ये
निभाने से हिकमत सलामत है साहिब, देखो ख़ुद क़े आशियाने में..!
कैद करने की वज़हे बेहतर है, जिम्मेदारी बखूबी निभाओ ये
सबकी किस्मत में इकराम नहीं है दोस्त, देख लो अब इस ज़माने में..!
खुदगर्ज़ी छोड़ दो, जो आज़माये, उनकी परख में नहीं आना
आख़िर वो अपनी वालिदैन थोड़े नहीं है, झुक जाये उनको मनाने में..!
अपनी राहे ख़ुद बनाओ, सिपहलासार ही क्यों बनना है तुम्हें
अपनी झोपड़ी का सुल्तान बनो तुम, कहाँ सुकून है उनके महलों में..!
धीरे धीरे चलते रहो, सफ़र बहुत खूबसूरत है ज़िन्दगी का भी
सभी क़े चेहरे क़ा नक़ाब उतर जायेगा, अब दिखता है तुमको उन में..!!-
"ज़िन्दगी पहले जैसी नहीं रही"😊
मुझमें अब उनकी रहगुज़र पे वापस,लौटने की चाहत नहीं रहीं
बहुत अज़ीज़ है अभी वो शख़्स मेरा, वो पहली सी मुहब्बत नहीं रहीं..!
दिल लगाने की अब कोई भी एक वज़ह ही नहीं दिखती मुझे
चेहरे बहुत खूबसूरत मौज़ूद है इर्द गिर्द, उसकी जैसी सूरत नहीं रहीं..!
ख़ुलुस अब खलिस में बदल चुका है, जानेज़ा यहाँ पर आज ये
मुहब्बत तो बरकरार है ख़्वाबों में,देखो अब हकीकत में वैसी नहीं रहीं..!
दूर से देखकर, ख़ुश देखने की चाहत अभी भी है मुझमें यहाँ पर
सलामत रहें उनका जहाँ हमेशा ज़िन्दगी में,मुझे जीने की चाहत नहीं रहीं.!
खूबियां मुझमें कोई नहीं, आख़िर क्यों कोई साथ देगा तुम्हारा भी
अब इल्ज़ाम लगाना ठीक नहीं लगता है,उनसे कोई शिकायत नहीं रहीं..!
सफ़र में एक मरहला रहा है वो, बस यही सोचता हूँ आजकल मै
मरहले तलक साथ सलामत रहा हमारा,उनकी मुझसे इतर मंज़िल रहीं..!
अब किसी से कुछ कहने पर क्या फ़र्क पड़ता है, ज़िन्दगी में यहाँ
उनकी अपनी राहे है, मेरी अलग मंज़िल,ये ज़िन्दगी पहले जैसी नहीं रहीं..!!-
"आजमाइश दौलत की"😊
मुझे आज़माने की कोशिश बेकार गयी उनकी भी यहाँ
सभी इंसान एक सा नहीं है मोहतरमा, देखिये ये बाज़ार नहीं है..!
कितना मौलभाव कर पायेगी, खरीदना है की साथ देना
दाम लगाने से कुछ नहीं बिकतें है जहाँ में, पहचानती नहीं है..!
दुनियाँ एक दम सीधी लकीर क़े मुनाफिक़ नहीं है यहाँ पे
कुछ आड़े तिरछे लोग भी मौज़ूद है यहाँ,इसको समझती नहीं है..!
कुएँ क़े मेढ़क की तरह दुनियाँ नज़र आती है आजकल ये
आपकी आज़माइश आख़िर कहाँ पहुंची,आपसा मिलता नहीं है..!
मुनादी कराये,स्वंयवर कराये हमको हमसा चाहिये जहाँ में
दौलत से खरीदने का माद्दा है आपको,कोई तो अब बिकता नहीं है..!
मुहब्बत कीजिये इंसान बिक जायेगा, बिना मोल क़े ही ये
इंसान बहुत भोली सी सीरत रखता है ये, सभी यहाँ वैसे नहीं है..!
ऐलान कीजिये आपसा शख़्स की की जरूरत है आपको
ये दुनियाँ बहुत बड़ी है मोहतरम, सभी क़ो यहाँ मिलता नहीं है..!!-
"आजकल रिश्ते"😊
आजकल रिश्तों की बुनियाद बहुत हिली सी दिखती है
इंसान में अब ख़ुलुस नहीं है, देखो सबमें ख़लिस दिखायी देती है..!
इक़ दूसरे क़े जज्बात की कद्र करना भूल गये है आजकल
अपने आप की चिंता बहुत है आजकल,मुक़्क़मल दिखायी देतीं है..!
खुदगर्ज़ी से बाहर निकलने की आख़िर जुर्रत कौन करें यहाँ
ख़ुद क़े लिये ही साम्राज्य खड़ा किया उसने, तन्हा नज़र आती है..!
दौलत की चाहत ज़ब तलक बरकरार रहेगी इंसान की यहाँ
रिश्ते दिन ब दिन कमजोर होंगे, फलसफ़ा यहीं दिखायी जाती है..!
कोहिनूर खरीद कर दे देना मोहतरम क़ो, ग़र टिक जाये वो
उनको आदत है इंसान क़ो आज़माने की, यहीं आज वो करतीं है..!
जिस रफ़्तार से निकली है दुनियाँ क़ो परखने,अपने हिसाब से
क़ोई खांचे में सटीक नहीं बैठेगा, ये ज़िन्दगी समझौते से चलती है..!
ज़िद बच्चों सी करें तो बेहतर लगता है महबूब भी मुहब्बत में
साज़िश करना बहुत बड़ा जुर्म है आज, मुहब्बत में यही करतीं है..!!-