भोर की शान्ति कभी, अब शामों का शोर हूं
अंकुशों में था सिमटा कभी, साहिलों का ज़ोर हूं।
सत्यवती की चाह नहीं, अम्बा का प्रतिशोध हूं।
डमरू में डमकता कभी,रूद्र का मैं रौद्र हूं।
अश्रुओं में ढलता कभी, अब शनि सा मैं वक्र हूं।
धरा में था धंसा कभी, अब सुदर्शन का मैं चक्र हूं।
-
I write in yourquotes only.
So don't follow me on IG to read my q... read more
बिछना है मेरी फितरत हूँ बड़ा रंगीन
किसी का बिछौना हूँ तो किसी की कलीन
दुआ के वक़्त किसी के माथे से मिलता हूँ
पाँव पोश नाम से दो कौड़ी में बिकता हूँ
ख़ास मैं कब बन गया ये बात बड़ी संगीन..
जब हवा में उड़ा मैं या जब बैठा अलादीन?
बिछना था फितरत जब से छूई थी ज़मीन
जानते किस ओर गया गर संग होती दूरबीन!!-
बहादुर और बेवकूफ में बस परिणाम का अंतर होता है!
झूठी ठहरी कहवात जिसमें जो सोता है वो खोता है।
यथार्थ में तो कटोरे से पर्चियां निकलतीं हैं।
शायद अमचुर के साथ लॉटरी में खुशियां भी बंटती हैं!
मिश्री बोलो, हद में डोलो ऐसे थोड़ी कोई रोता है?
याद रखना जीवन मंत्र अच्छों के साथ अच्छा होता है!
ऐसी झूठी घुट्टियों ने जाने कितना वक्त बर्बाद किया।
श्रवण को क्यूं मृत्यु और रंगजेंब को गद्दी से आबाद किया!!
बहादुर और बेवकूफ में बस परिणाम का अंतर होता है!
झूठी ठहरी कहवात जिसमें जो सोता है वो खोता है।
- श्रेया
-
ख़बर छपी है अखबारों में
वो फ़िर लौट के आया है
भूला बिसरा बचपन कुचला
बाली सा कहलाया है।
सत्य को रौंदे, कला को धो दे
ऐसा उसका साया है...
महारथियों से बस प्रश्न मैं पूंछूं !
क्या "भय" तुमसे टकराया है।
- श्रेया
#pasttraumas
-
वो कोशिशें फीकी नही जाती
जो हर रोज़ संवरती हैं!
संघर्ष के दर्पण में ही
मुझको विजय दिखती है!-
मैं ने सौ वाक्य सोच के दो शब्द कहें है
उस शाम शायद चाय कड़क होगी।
क्या मालूम था लड़का बनते ही
पिता संग बैठने में झिझक होगी।
क्या वो तौलते रह गए
क्या मैं सोचता रह गया।
जिस चौके को देख कर सीटी मारनी थी
उसके पड़ते ही सीलिंग तकता रह गया।
मैंने पल जोड़ जोड़ कर बस लम्हे जिए हैं
उस शाम शायद चाय कड़क होगी।
क्या मालूम था लड़का बनते ही
पिता संग बैठने में झिझक होगी।
हस के मुझे गले लगाने का
खयाल उनका भी रह गया
लड़का कहीं बिगड़ न जाए
ये खयाल मिलती शाबाशी पी गया।
मैंने अकड़ हिचक में एक हमदर्द खोए हैं।
उस शाम शायद चाय कड़क होगी।
क्या मालूम था लड़का बनते ही
पिता संग बैठने में झिझक होगी।-
खुदको इतना कोसने का
ये हुनर कहाँ से लाते हो
इतनी तो चीटियां नहीं
जितनी ख़ामियां गिनाते हो
इतना संशय ले के
तुम उड़ान कैसे भर पाओगे?
याद है तुम कहते थे
नया आसमाँ बनाओगे!
क्यूँ इन नन्ही आंखों कि
चमक सिर्फ आंसुओं में दिखती है!
क्यूँ तुझको बीते कल की
यादें बस मीठी लगती है.
ख़ुद से यूंही रूठने का
ये हुनर कहाँ से लाते हो?
इतनी तो जंग भी नहीं लड़ी
जितनी हारें गिनाते हो!
इतनी घृणा ले के
तुम किस कदर प्रेम जताओगे?
पतझड़ को अपनाकर ही
तुम बहार बन जाओगे!
-
मान लिया है हमने
कि मेरे किस्से के हिस्से
श्रोता ज़रा कम आएंगे
पर ज़िक्र जब भी तेरे
गमों का होगा!
पहली कतार में आप हमें पाएंगे।
-
Locked up some emotions
Left with an broken key!
Is it just my mood?
Or I've never been so lonely. — % &-