एक दूसरे की मौजूदगी में मसरूफ़ हम दोनों मुस्कुरा रहे थे। कि एक ख़बर आई और वो अपने, दफ़्न मगर ज़िंदा माज़ी में जाकर रोने लगा। मैं बेसुध होकर उसे तकती रही, और गर्म चाय ठंडी हो गई। जाते हुए उसने मेरे गालों को छुआ, और मेरी आँखें सुर्ख़ लाल हो गईं ।
क्यों थकी-थकी सी हाँफती राह पर यूँ दौड़ता मेरा ये दिल..? क्यों नए-नए दर्द की फिराक में भटकता मेरा ये दिल..? खेल है, सब ये जानता, फरेब है, सब ये जानता, क्यों चाँद की तलाश में उलझ गया सितारों से मेरा ये दिल..? क्यों ज़रा-ज़रा सी बात पर खफ़ा-खफ़ा यूँ रूठता मेरा ये दिल..?