एक दूसरे की मौजूदगी में मसरूफ़ हम दोनों मुस्कुरा रहे थे।
कि एक ख़बर आई और
वो अपने, दफ़्न मगर ज़िंदा माज़ी में जाकर रोने लगा।
मैं बेसुध होकर उसे तकती रही,
और गर्म चाय ठंडी हो गई।
जाते हुए उसने मेरे गालों को छुआ,
और मेरी आँखें सुर्ख़ लाल हो गईं ।-
मेरे स्वतंत्र विचारों का श्रेय मैं अपने परिवार को देती हूँ।
अपने संकीर्ण विचारों का श्रेय आप किसे देंगे?-
दिल में गिले शिकवे रखने वालों से दूर ही रहें।
ये लोग जिस्म पर नहीं, ज़हन पर घाव देते हैं।-
क्यों थकी-थकी सी हाँफती राह पर यूँ दौड़ता मेरा ये दिल..?
क्यों नए-नए दर्द की फिराक में भटकता मेरा ये दिल..?
खेल है, सब ये जानता,
फरेब है, सब ये जानता,
क्यों चाँद की तलाश में उलझ गया सितारों से मेरा ये दिल..?
क्यों ज़रा-ज़रा सी बात पर खफ़ा-खफ़ा यूँ रूठता मेरा ये दिल..?-
जो इन्सान गर्मी में भी चाय पीता है,
उसकी मुहब्बत पर कभी शक मत करना..!!-
मेरी रात के हो, चाँद तुम
मैं दर्द हूँ, और जाम तुम।
ग़र इत्तला करूँ तुम्हें तो
मेरी चाहतों का नूर तुम,
मेरी रुह में उतर गए हो
ज़र्रा-ज़र्रा ज़रूर तुम
हो मेरे ग़ुरूर तुम।-
याद आते हो इस कदर, कि याद हो गए हो
मैंने ढूँढा बहोत तुम्हें, जाने कहाँ खो गए हो!-