यूँही में वक़्त का रुख बदल सकती, तो क्या बात
होती,
रोज़ जिंदगी के आईने मे खुद के अक्स को नज़रंदाज़ कर सकती ,तो क्या बात होती,
कोई मुझे टूटता देख सवारने की सोच लेता ,तो क्या बात होती,
अनकहे लफ़्ज़ों के चिक्ति गहराईयों को कोई समझ लेता, तो क्या बात होती,
मेरे बनाए रिश्ते भी मुकम्मल होते ,तो क्या बात होती,
घर रहते में दूसरे जगह में आसरा न ढूंढती ,तो क्या बात होती,
मेरे मुस्कुराते चेहरे के अनसुने राज़ कोई सुन सकता ,तो क्या बात होती|
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