Shreya Sethi   (Shreya Sethi)
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Joined 20 February 2018


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Joined 20 February 2018
15 OCT AT 20:52

बेटों की तरह न पालो बेटी को
या बहु की तरह न ढालो बेटी को

अपनी हो तो प्यारी लगती है,
दूजे की तो बस कोई सवारी लगती है
अपने पराए की दुविधा में न डालो बेटी को

ज़िम्मेदारी उठाने ही जैसे आती है
तुम्हें रोशन करने ही जलती बनके बाती है
न सम्भाल सको तो कोख में मार डालो बेटी को

एक दिन चली जाती है वो घर से,
फ़िर कभी पीछे मुड़ती नहीं मर के,
आ न पाए वापिस कभी, ऐसे घर से न निकालो बेटी को

और सुनते हैं क्या ऊपर बैठे भगवान, देवता, ऋषि मुनि
क्यों दुख उठाने को बेटी ही चुनी
यहां नहीं बसर होता, अब उठा लो बेटी को

बेटों को तरह न पालो बेटी को...

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4 MAR AT 22:02

मेरा ऐसा मानना है,
प्रेम सबसे आदर्श भावना है।

न जात जाने न भाषा,
साथ की है अभिलाषा,
किसी क़िस्मत वाले ने ही जाना है।
प्रेम सबसे आदर्श भावना है।

अर्पित करना पड़ता है इश्क़ में,
ये श्रेय पाने वाला जो इंसान है,
उसने सिखाया निभाना है।
प्रेम सबसे आदर्श भावना है।

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8 DEC 2024 AT 21:05

क्या कहूँ किसने मुझे आईना दिखाया, किसने मुझे यहां धकेला है,
धक्क हो कर रह गई, ये जाना जब कि अपनों के बीच भी हर शख़्स अकेला है।

एहसासों का बाज़ार है यहाँ, सस्ती मोहब्बतों का मेला है,
साथ कोई नहीं है मेरे, दिल रो रो कर बताता है, महफिलों में भी अकेला है।

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26 AUG 2024 AT 16:41

बड़ी दूर से खुदा मुझे आवाज़ दे रहा है,
आंसू अब मेरे गमों को लिबास दे रहा है,
काफ़ी लम्बा जिया है मैने दर्द का सिलसिला,
ले जाए मुझे रब्ब, के अब मेरा सब्र जवाब दे रहा है।

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15 AUG 2024 AT 12:14

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29 MAR 2024 AT 10:23

प्यार के बीज उसने बोना छोड़ दिया,
आख़िर क्यों उसने तुम्हारे सामने रोना छोड़ दिया?
वो जो बचपन से संभाला हुआ था उसके पास जायदाद सा,
अचानक आज कैसे उसने वो खिलौना छोड़ दिया?

उसने अपने दिल से तुम्हें मिलाना छोड़ दिया,
हर बार तुम्हें ख़ास सबसे बनाना छोड़ दिया,
अब वो नहीं बताती कभी अपने दिल की बात तुमसे,
वो जो तुम कहते थे कि जिसने तुम्हारे लिए ज़माना छोड़ दिया।

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11 MAR 2024 AT 21:23

And as I look deep into the void of nothingness,
I find the realm of the horizon of eerie peace.
As I slowly rise above the feeling of myselfness,
That's where people find the designated ill relief.

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14 JUL 2023 AT 14:06

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28 JUN 2023 AT 19:35

मेरे कदमों में जैसे बादलों की चादर बिछी थी,
काली थी कोई, और कोई बदली उजली थी।
हवा में तैरते थे हम कुछ इस तरह,
मछली झूमे बेपनाह सागर में जिस तरह।
खुदा ने भी क्या खूब नज़ारा बनाया था,
मुझपे बरसने वाले बादलों से ऊपर मुझे बिठाया था।
नीला अम्बर, ज़मीं नीली और किरणें बिखेरता सूरज था,
बादलों के बीच से जो भी दिखता, हर नज़ारा खूबसूरत था।
जैसे किसी ने खूबसूरती नज़रों में उतार दी थी,
जहां से ऊपर उड़ने की, मुझे ये नायाब बहार दी थी।

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26 FEB 2023 AT 23:19

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