Shreya Bhattacharya   (काशी)
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A Classical artist
Choreographer
Performer
Sitar Player
Freelancer
Writer
Joined 22 March 2019


A Classical artist
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Joined 22 March 2019
27 MAY 2022 AT 20:06

जब कहने को कई बातें हो,
और अकेली अंधेरी रातें हो,
जब आंसुओं की बरसातें हो,
तब अकेला सा लगता है।

जब पूरा दिन ढल जाए,
दिल में दर्द सा उठ जाए,
जब कहीं मन ना लग पाए,
तब अकेला सा लगता है।

जब कोई पास ना हो,
जीने की कोई आस ना हो,
संभालने को कोई खास ना हो,
तब अकेला सा लगता है।

जब हजारों दर्द को दफनाएं,
मन के ज़ख्मों को अपनाएं,
इस अकेलेपन से हार जाएं,
तब अकेला सा लगता है।

जब कोई गले को न लगाए,
इस टूटे दिल को ना बहलाए,
आंसू पोंछ कर हमें ना फुसलाए,
तब अकेला सा लगता है।

~श्रेया








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7 JUL 2020 AT 22:06

कुछ तेरे नज़रों का ही तो असर हैं जो में होश खोने लगी हूं, ये इत्र है या तेरे बदन की ख़ुशबू जो मैं मदहोश होने लगी हूं।❤️🔥

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17 OCT 2019 AT 23:25

आज उसे चांद में अपना प्यार दिख रहा हैं,
और वो सरहद पर गोलियों के बीच ज़िन्दगी का इतिहास लिख रहा हैं।

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18 AUG 2019 AT 19:45

जिस्म मेरा छूता था वो प्यार की दुहाई देकर जैसे इश्क़ नहीं सौदा हो जिसम का!

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4 SEP 2020 AT 0:48

रिश्ता क्या ख़त्म हुआ हमारा तुमने तो बदनामी फ़ैला दी मेरी ज़माने में, ख़ूब कामयाबी मिलती तुम्हे भी अगर इतनी मेहनत लगाते इज़्ज़त कमाने में।

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12 AUG 2020 AT 14:12

तेरे यादों के सहारे जी रहे है हम पर जीने का मज़ा आ नहीं रहा,
मदहोश है यूं तेरे बेवफ़ाई में के किसी और का इश्क़ अब भा नहीं रहा।

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12 AUG 2020 AT 3:05

मौत के इंतेज़ार में हम जी रहें हैं ज़िन्दगी
ये कैसी ख्वाहिश है जीते जी मरने की?

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11 JUL 2020 AT 15:24

आंखों में नमी होंठो पे हंसी
क्या हाल है और क्या दिखा रहे हो?
ज़ख़्म है ताज़ा और दर्द है गहरे
तो झूठी तसल्ली क्यों दिला रहे हो?

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11 JUL 2020 AT 12:14

यूं जो तुम सबको जताते हो
बेवफ़ा मुझे अब बताते हो
दुनिया में मुझे ग़लत बता कर
अपने झूठे ज़ख्म दिखाते हो

अब तो सपनों में सताते हो
और हकीक़त में रूलाते हो
मुझसे ही छुप छुप कर तुम
मेरी ही बदनामी फैलाते हो

कभी यादों में बहलाते हो
कभी बालों को सहलाते हो
और आंखे अपनी मूंदू तो
बड़े मासूम से मुस्कुराते हो

जब रिश्ते ना निभाते हो
तो सपने क्यों दिखलाते हो
बेगैरत हमें ठहरा कर क्यों
खुद को बेचारा कहलाते हो

क्यों सच को तुम छुपाते हो
झूठी कहानियां क्यों बनाते हो
नफ़रत हैं मुझसे तो क्या हुआ
पर झूठा इल्ज़ाम क्यों लगाते हो

अब तुम अकेले भी मुस्कुराते हो
मेरे बिन भी खिलखिलाते हो
मेरे इश्क़ का एहसास नहीं हुआ तुम्हें
तभी तो मुझे बेवफ़ा बतलाते हो।

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7 JUL 2020 AT 16:26

उस रौशन गली के गुमनाम कमरे में एक बिस्तर तुमने भी तो लगाया हैं,
मैं अकेली नहीं जिसने उस रात अंधेरे में अपना सारा इज्जत गवाया हैं,
वो चांदनी से चमचमाते गलियारे में तुमने सिर्फ़ मेरा दाम ना लगाया हैं,
एक बार फ़िर किसी ने अपने चाहत के खातिर मेरे सपनों का गला दबाया हैं।

धीरे से पल्लू जब तुम हटाते हो दिल तो मेरा भी बहुत रोता हैं,
पर कुछ तो ज़रूरी हैं घर चलाने को मेरा बच्चा अक्सर भूखा सोता हैं,
वो लिपिस्टिक की लाली और गजरे की ख़ुशबू में होश जो तुम्हारा खोता हैं,
इस बाज़ार में जिन्हें तुम वैश्या कहते हो एक अंश तुम्हारा भी तो होता हैं।

जिनके नाम पर तुम गालियां बनाते हो वो तुम्हारे भूखी गंदगी को मिटाती हैं,
कभी न कभी उन्हें भी अपने ज़िन्दगी की हक़ीक़त सताती हैं,
कभी हस्ती हैं, कभी हसाती हैं, कभी रोती है तो कभी रुलाती है,
यहां छोड़ जाते हो अपने आग कि निशानी और वो "वैश्या" "मां" बन कर उसे दुनिया से बचाती हैं।

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