गाँव रा गुवाड़ छुट्या ,लारे रह गया खेत
धोरा माथे झिणी झिणी उड़ती बाळु रेत..,
उड़ती बाळु रेत, नीम री छाया छूटी
फोफळीया रोँ साग, बाजरी गि रोटी
आसाढ़ रे महीने में जद खेत बावण जांता
हळ चलाता बिज बिजता कांदा रोटी खांता..,
कांदा रोटी खांता भादवे में काडता निनाण
खेत माइल झुंपड़े में सोंता खूंटी ताण
गरज गरज मेह बरस्तो खूब नाचता मोर
खजड़ी रा खोखा खांता बोरडी गा बोर
बोरडी गा बोर खावंता काकड़िया मतीरा
श्राद्ध में रोज जिमता देशी घी गा सिरा...,
आसोजा में बाजरी गा सीटा भी पक जांता
काती गे महीने में सगळा मोठ उपाड़न जांता
मोठ उपाडण जांता सागे उपाड़ता ग्वार
सर्दी गर्मी सहकर भी सुखी हा परिवार..,
गाँव रे हर एक घर में गाय भेंस रोँ धीणों
घी दूध घर का मिलता बो हो असली जिणों
बो हो असली जीणों कदे ना पड़ता बीमार
गाँव में ही छोड़ आया ज़िन्दगी जीणे रो सार...,
सियाळे में धुइं तपता करता खूब हताई
आपस मं रळमिळ रेवंता सगळा भाई भाई
काईं करा गाँव री आज भी याद सतावे
कहे कवि "श्री सारस्वत "समय बितयो पाछो नहीं आवे !!— % &
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