वे टहनी पे लगे मुरझाये पत्ते... 🍂🍁
इस भीड़ में सबसे जुदा , सबसे तन्हा
कुछ स्थिर और खुद से खफ़ा सा रहता है...।
वाकिफ़ है वो भी अपनी खामियों से, फिर भी
एक उम्मीद के सहारे जिंदगी से लड़ता है...।
कभी पुछना...
उन मुरझाये पत्ते से उनकी आखिरी ख्वाहिश...
किस तरह वो पानी की एक बूंद को तरसता है...।
आज जो उसे जी भर के मिली है बारिशें...
अब तो वो हकिकत टूट बिखरने से डरता है...।
काश..
रहने देती कुछ पल झूठी तसल्लियों में ही उन्हें
पर जाने क्यों ये हवाएं भी कुछ बेवफा सा लगता है...।
चलो खत्म हो ही गयी ये जिंदगी आखिर, पर ये बारिश
अभी भी बूंद बन कर उनपर मोतियों सा चमकता है...।
-