बेसुध हो, एक नाम को, तहफीज़ से दिल में उतारा है खैरियत पर शाम ढले, ऐसा ख़्वाब सवारा है ज़ेहन में बस एक बात चले दिल तक अब दिमाग बैचैन एक मर्ज ने ऐसा मारा है हा वो नाम तुम्हारा है हा वो नाम तुम्हारा है!
Zidd zara zara si Zara zara se Zikr me, Zareen waqt ko fikr hai Zard padh jane ka ikr hai Zarre zarre ko ilm hai Zaheen rakt ka zikr hai ,jo Zaafran sa tha ghula ,wo Zalzala sa tha chala ,wo Zeher tha nikla zarf me Zaya hue har ek harf me Zehen bhadakti aag thi Zawalat se wo barf me, jo Zakhm thhe jo pakk gaye Zahanaton se dhak gaye Zakheere ho ziyaraton pe, fakr hai Zaheeno par sab zarb hai sab Zabt hai sab Zabt hai!
मुसलसल किस्सों में, हिस्सेदारियां आम हुई! दलीलें उठ कर जाने की, सारेआम नाकाम हुई गुफ्तगू रात से शुरू जो, सुबह अंजाम हुई खुमार ही टूटते शाम हुईं नींदें बदनाम हुई!
वहां आगे जाने का सपना था, तो चला मैं हज़ारों में कुछ कुचलते देख अपनो को, रह गया किनारों में! होड़ बढ़ने की लगी थी, तो कुछ, लग गए कतारों में ज़िद्द बदलने की लगी थी तो कुछ बिक गए बाजारों में कुछ हट गए कुछ बट गए, वक्त की दरारों में मैं खटक रहा, जो न चला क़िस्मत के इशारों में, हूं लड़ रहा, और चल रहा बच भीड़ के त्योहारों से, हूं सर झुकाए लिख रहा तकदीरें सितारों में!