Shradha Parmar   (श्रद्धा परमार "निर्वाण")
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Joined 27 November 2018


Joined 27 November 2018
20 JUN AT 0:37

मेरे सुकून के क़ातिल मेरे अपने ही अल्फ़ाज़ बन गए ।
इतना कुछ दबाए बैठा था वो मन में अपने ,
हमने कुछ कहा तो हम दगाबाज बन गए ।
उसने कभी पूछी ही नहीं तबियत मेरे बीमार दिल की
जब हमने शिकायत की तो हम गुनाहगार बन गए ।

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19 JUN 2022 AT 9:38

जिसका होना घर पर छत सा हो, जो धरती को ढंकता आसमान हो, जिसके कंधे की सवारी आसमान में उड़ते हवाईजहाज से ज्यादा मजेदार हो , जिसकी उंगली पकड़ने पर ही दुनिया से लड़ने का साहस जाग जाए, पर्स में पैसे कम होने पर भी जो हम बच्चो पर खुशी लुटाता आया है , जो Cool है जमाने की ताल से ताल मिलाकर चलता आया हो , जो अपने हर रिश्ते को बिना दिखावे छलावे की निभाते आया हो, जो मेरी हिम्मत है ताकत है | जिसने जीवन में सही गलत का फर्क सिखाया साथ ही सही को सही गलत को गलत कहना सिखाया | जिन्होंने हम तीनो को इस काबिल बनाया और हमेशा हर परिस्थिति में हमारा साथ निभाया | मेरे प्यारे पापा हम तीनो आपसे बहुत प्यार करते है | आप हमेशा स्वस्थ रहो और मेरी उम्र भी पापा आपको लग जाए |

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14 MAR 2022 AT 10:47

ख़ुद ही सुलझानी पड़ती है |
जब मंजिल तुझे पाना हो मुसाफ़िर,
खुद राह बनाना पड़ती है |
राहों में आते रोड़ो को,
ख़ुद ही हटाना पड़ता है |
टूटते हौंसलो को अब,
खुद ही बढ़ाना पड़ता है |
जब मंजिल खुद की,
राहें खुद की,
तो क्यूँ तू सबसे आस लगता है
अकेला ही मैं काफ़ी हूँ,
खुद को समझाना पड़ता है |

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13 MAR 2022 AT 17:01

उम्मीद का दामन कुछ ऐसे थाम रखा है ,
जैसे लबों पर हमारे खाली ज़ाम रखा है |
सपनों के सितारे उस दामन में सजाए है ,
ख़्वाईशो के किस्से कुछ हमने भी महफ़िल में सुनाए है |
सपनों का भी हमारे उन्होंने दाम रखा है ,
करती हूँ सब तुम्हारी ही मर्जी से
और मेरा मनमौजी नाम रखा है |

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13 MAR 2022 AT 16:48

वो हजारों कमियाँ गिनाते है मुझमें,
जो ख़ुद ऐबों की दुकान है |
तोड़ते है सदा मेरे सपनों के महल,
जिनके खुद काँच के मकान है |

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12 MAR 2022 AT 17:20

ऐसे भी मुकाम आते है |
होते है जो दिल को सबसे अज़ीज,
वही सबसे गहरे ज़ख्म दे जाते है |

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12 MAR 2022 AT 14:09

मन पर पड़ी चादर जिसमें सिलवटे हजार है ,
सिलवटों में बिखरे पड़े है कुछ ख़्वाब
कुछ उमंगे
कुछ तरंगे
कुछ जीवन में घुलते रंग
पर मैं तो स्त्री हूँ
असमंजस में हूँ
कि क्या झटक दूँ उस चादर पर पड़े मेरे सपने एक झटके में और कर लूं सफाई क्योंकि ये मुझसे मेरे अपने यही चाहते है
या उन सलवटों में पड़ी उमंगों , तरंगों , उन ख्वाबों को करीने से सजा कर रख लूं मन के किसी कोने में
शायद कोई आये और कह दे कि ये पुराने सपने दबे क्यों है शायद मिल जाये मुझे वक़्त कभी खुद के लिए |

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12 MAR 2022 AT 12:30

साथ न हो जब कोई अपना,तब ईश्वर साथ निभाता है |
सुख की छाँव हो या दुख की दोपहरी,वो सदा हौंसला बढ़ाता है |
तब ईश्वर साथ निभाता है |
जब मन में दुविधा के बादल घिरते,वो बसंत बहार दिखाता है |
तब ईश्वर साथ निभाता है |
चहुँ और जब तमस भरा हो,वो दिये सा टिमटिमाता है |
तब ईश्वर साथ निभाता है |
धर्मयुद्ध हो अपनों में तब,वो कृष्ण सखा बन जाता है|
मुझ अर्जुन को तब वो कान्हा,गीता ज्ञान सुनाता है |

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12 MAR 2022 AT 12:07

ख़ुशबू अपनों की रिश्तों की बगिया महकाती है |
यही महक परिवार को मेरे एकजुट बनाती है |
इस बगिया में फूलों संग काँटे भी सज जाते है |
हो परस्पर प्रेम तो काँटे भी परिवार की शोभा बढ़ाते है |
प्रेम का पानी , सहनशक्ति की खाद मिलाओ
धीरज की किरणों से अपने परिवार की चमक बढ़ाओ |

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12 MAR 2022 AT 11:52

मुझको अब मेरी ही कमी खलती है,
वो चहचहाती श्रद्धा अब ढूंढे नही मिलती है |
जिसकी आँखो में सपने,
जज़्बात और जोश के ख़जाने थे |
जाने क्यों वो अब आंखो में,
खालीपन लिए निकलती है |
मुझको अब मेरी ही कमी खलती है |
सब कुछ है पास उसके ,
फिर भी अकेली सी लगती है
जो लुटाती थी सबपर प्यार के खज़ाने
न जाने क्यों आज खाली खाली सी चलती है |
मुझको अब मेरी ही कमी खलती है |
वो चहचहाती श्रद्धा अब ढूंढे नही मिलती है |

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