मेरी अंधेरी सी गलियों का मानो शोर था वो
लेकिन महज़ उस उम्र का ही दौर था वो
फिर इक दफा एहसास हो गया मुझको
मेरी नहीं, किसी और की ही खोज था वो
हमने फिर डर के उसे छोड़ दिया था इक दिन
मेरे माजी की तरफ बढ़ रहा हर रोज था वो
और इक रोज मेरा सामना हुआ उससे
इस कदर मिल रहा था के जैसे गैर था वो
मैं जिसे इतने दिन से जानती थी
वो नहीं था कोई और था वो
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