फिर बहुत देर तक अंदर ही रहता है
जो कुछ खुद से बयां नही किया जाता है-
कैसे भूलते होगें लोग एक दूसरे को
जिनके साथ लम्बा वक्त गुजारा हो
वो कभी तो याद आते ही होगें-
शायद कहना जरूरी होता है
इसलिए लोग समझ नही पाते
कभी अनकही बातों को
हम बोल नही पाते उनसे
और वो समझ नही पाते
फिर इतनी उम्मीद लगाए हुए रूके रहते है
और जाने वाले वापस लौटते नही
अब मैं समझती हूँ की वो नही जानते हमारी उम्मीदें
इसलिए शायद कहना जरूरी होता है
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त्योहार की रौनक अब वैसी नही रहती है
घर में माँ ना हो तो कोई खुशी नही रहती है
लोग आते है जाते है सफर चलता रहता है पर
कोई अपना चला जाये जब छोड़ कर हमें तो
फिर जिंदगी पहले जैसे नही रहती है
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वो बातें जो कभी बयां की जा सकती थी
उन बातों ने कितना कुछ सहन किया होगा
इतनी चुप्पी को कहीं अंदर दबा कर के
हौसला बना कर के खुद से कितना लडा़ होगा
ठहरा रहा होगा डर मन कितने कोने तक
कह देने वाली बातों पर जब मौन लिया होगा
सोचों उदासी की सीमा तक जाकर के
मन को कितना दुख दिया होगा अब तुम ही सोचों
वो बातें जो कभी बयां की जा सकती थी
उन बातों ने कितना कुछ सहन किया होगा
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दूरियाँ उनके दरमियान कभी भी नही आती है
वो जो दिल के करीब होते है वो हमेशा खास होते है-
साथ दोगे तो साथ होगें
सवाल इतने है तो
जवाब भी होगें
वो जो छुप रहे है इतने परतों में
वो कभी तो बेनकाब होगें-
बारिशें कब सुहावनी हुई है की
बारिशें याद दिलाती है किसी का ना आना
वापस ना आ पाने का और गहरा हो होना
हम बस यूँ ही उसके आने में खुशी ढूंढते है
और ढेर सारी नमी लेकर आती है-