असल में हम आजादी के उस मुकाम पर है
जहाँ हमें अब किसी का इंतजार ही नही है-
चलो फिर जाने देते है अंत में सब कुछ
ये भी तो अपने आप में बहुत बड़ा सब्र है-
अब मैं वो रास्ता क्यूँ चुनूँ जहाँ मुझे जाना नही है
मेरे पास खुद के पास भी लौटने का तो रास्ता है-
क्या झाकते हो मन की किवाड़ो से
दिल में क्या दबा रखा है जो कहते नही हो
या फिर खुद से कह चुके हो तुम हजार बार
दिल ही दिल में चीखते हो चिल्लाते हो
मन की आवाज बाहर नही ला पाते हो
ये कैसी चुप्पी है जो इतनी गहरी हो गई है
क्या हिसाब लगाते हो इस जिंदगी का
ये वैसी ही चलती है जैसे चलना है इसको
तो बाहर लाओ खुद को इन दीवारों से
और आजाद कर दो अब खुद को
फिर लम्बी सांस लो जीने के लिए सिर्फ जीने लिए-
ये जो चांद को अपनी मुंडेर तक ला रखा है
इनसे कुछ गुफ्तगू भी होती है या
मेरी तरह इसे भी तन्हा कर रखा है-
यूँ आखें भींच कर के क्या देखते हो
मेरी इस तन्हाई का सबब तुम थोड़ी हो
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इक हर किसी को दरकिनार कर रखा है उसने फिर
ये उम्मीद भी पाल रखी है की कोई हाल पूछने आये-
हमारे दिल को भी होती है सुकून की तलाश
पर ये मन का बोझ लिए हुए कहाँ जाए हम-
कुछ यादें आपको उस छोर तक ले जाती है
जहाँ से फिर वापस लौटना आसान नही होता है-