।..तकलीफ को थोड़ा आजमा भी लों..।
अपनो की बात है,एक अलग सी तकलीफ है,
समज में ना आएं किसी को, ऐसी उलझन है.
जीवन है इसलिए समस्याएं हैं
मानो जैसे पक्शीयों के पंख,
कभी करते वे परेशान,
पर उड़ान भी लेते हैं.
तकलीफें बीगडा देती इंसान को,उल्झा देती
पर मानों मेरी,सही बदलाव यहीं हैं ।
जीवन में आ गया एक पल।
भरोसा रखें किस पर,
सोंचु में हर पल,
क्या...एहसान होगा हम पर.?
सब सोच में हे अपने, और कितने मिलेंगे सदमे.?
खुद की जगह है वो सही..
पर सुनो.. वहां और है कोई..।
कैह दो,जरा सुन भी लों,जरा बैठो
और सोंच भी लों,मान लो और उल्झा कर
सुल्झा भी लौं, जरा तकलीफ को थोड़ा आजमा भी लौं..।
-