पहलू मे अपने तूफान बांधती थी
जानता था मै कि वो सब जानती थी
बड़ी अजीब सी शख्शियत थी उसकी
चुप रहकर भी शोर आखो से मचाती थी
बदलती थी हर रोज नकाब चहेरे से अपने
पर रूह को बदल नही पाती थी
छुपाती थी बहुत कुछ दिल मे
पर आखो से अक्सर बोल जाती थी
थी शिकायते जिनसे
उन पर ही अपना हक जताती थी
इंसान ही थी आखिर बहार से जितना पत्थर बनती जाती थी
अन्दर से उतना ही टूटती जाती थी
पहलू मे अपने तूफान बांधती थी
जानता था मै कि वो सब जानती थी-
Shraddha Mishra
(© श्रddha miश्रा)
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Joined 13 April 2018
16 AUG 2024 AT 23:01
27 MAY 2022 AT 1:03
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9 DEC 2021 AT 21:19
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27 MAY 2021 AT 10:00
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3 APR 2021 AT 13:41
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