मेरे दोस्तों,
पिछली बार इसी दिन मैंने कुछ सखियों को चिठ्ठी भेजी थी कि वो अपने पंख मजबूत करने की सोचें।आज मैं सबको चिट्ठी लिख रहीं हूं। बस यही कहना चाहती हूं, कि बस मज़बूत पंख से देने से उड़ान अच्छी होने का दावा कैसे कर सकते हैं?
हमें आसमान भी तो देना होगा ना। जब हर महीने उड़ान का तरीका बदलना होता है, तब तन के साथ मन में भी तो बदलाव होते हैं और मन में बदलाव जीवन पर भी तो असर डालते हैं। अगर हमने एक ही पहलू समझा तो बहुत कुछ अनछुआ रह जाता है। पोषण शरीर, मन और आत्मा तीनों का ज़रूरी है।
क्यूं ना हम सब समझें कि बदलाव कैसा होता है? कि ज़िन्दगी के सफ़र के इन मोड़ों की तैयारी कैसे करनी चाहिए? कि आपके साथ के लोगों का ध्यान कैसे रख सकते हैं? बहुत कुछ बेहतर हुआ है,लेकिन अभी भी ऐसे कदम ज़रूरी हैं, कि ये वरदान, अभिशाप बनने से बचे!
हमें कमजोर को मजबूत, और मजबूत को और मजबूत बनाना है। सहानुभूति नहीं, मज़ाक नहीं, छुई-मुई बनाने वाली लापरवाही भी नहीं और दूसरों से अनजाने में मिले इल्जाम भी नहीं (जो मन के बदलाव ना समझने से होते हैं) ;बस साथ , इरादे और हौंसला चाहिए। पंख और आसमान देने से क्या होगा? उड़ान को दिशा भी चाहिए। आओ दिशा बनते हैं, आगे बढ़ते हैं!
तुम्हारी दोस्त,
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