बढ़ जाएं ग़र राह में कांटे
बन कर मैं परिंदा उड़ जाऊं,
छोड़ के कुछ झूठी ख़्वाहिशें
उम्मीदों का सवेरा मैं बन जाऊं।
कुछ टूटे हुए जज़्बातों की
क़ाबिल-ए मरम्मत बन जाऊं,
चन्द शब्दों की गहराइयों को
लफ़्ज़ों से बयां मैं कर जाऊं।
वो ख़्वाब जो देखे अपनी मंजिल
उसकी एक रात मैं बन जाऊं,
बरसों की पड़ी बंजर ज़मीन पे
उगता एक फूल मैं खिल जाऊं।— % &
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