कभी सोचा है,
ज़्यादातर कलाकार मर्द होते हैं ।
कुछ दार्शनिक , कुछ चित्रकार
कुछ मार्गदर्शक , कुछ गायकार ।
मर्दों में ममता नहीं होती
सहने की क्षमता नहीं होती ।
पर वो महकना चाहतें हैं सब जगह
हर कोना बनाना चाहते हैं गुलशन ,
वो रचना चाहते हैं सब कुछ
पर वो रच नहीं सकते किसी का जीवन ।
© सहर-
किसी ओर के साथ उसे निखरते देखा ,
अपने जज्बात को फिर, मैंने मरते देखा ।
हम साथ रहेंगे जो भी हालात हो,
आज उन वादों से उसे मुकरते देखा ।
ये खुशमिजाज़ चेहरा सबको देखता है ,
मैंने हर हार में, ख़ुद को बिखरते देखा ।
ये सच हैं,हर वक्त कोई साथ नहीं रहता,
अकेले ही चांद को चढ़ते देखा,चांद को ढलते देखा ।
सब कुछ तो बदल गया है सहर,
ना जानें क्यूं उसे गली में ठहरते देखा ।
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मुझे देखकर पिघल गया कैसे,
वो बेदर्द यूं, मचल गया कैसे।
जिस राह पर चलना सिखाया
वो इतना आगे निकल गया कैसे ।
उसे तो खुला आसमां पसंद था,
वो खोखला महल गया कैसे।
खुद्दारी किरदार का हिस्सा थी,
वो अपनी अना, निगल गया कैसे।
उसी से सारे राब्ते , रिश्ते थे 'सहर'
आज वो, बदल गया कैसे ।
© सहर
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उसकी बाहों के सिवा कहीं आराम नहीं,
वो ना मिले तो, कोई सवेरा कोई शाम नहीं।
मुहब्बत, खुदा का हमें तोहफ़ा है,
इस रिश्ते का जहां में, कोई दाम नहीं।
दोनों साथ ही अच्छे लगते है,
जैसे राधा के बिना,श्याम नहीं ।
वो ज़िक्र, फिक्र हर जगह करता है,
ये रिश्ता, इस जहां में बेनाम नहीं।
पूछते है क्या करती है 'सहर'
उसे निहारने के अलावा, कोई काम नहीं ।
© सहर
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कोई एहसास कभी मरता नहीं है
कोई रिश्ता , कभी ख़त्म नहीं होता,
ज़िंदगी में नए लोग जुड़ते है
कई पुराने क़िस्से धुंधले हो जाते हैं ।
बस शर्त है,
अपने जज़्बात को काबू रखा जाए ,
हर हालत को तसल्ली से संभाला जाए।
कभी मां बाबा के सपनों को देखे
उनके हाल पर ख़ुद को रखकर सोचे ,
दिल ना माने , तो उनकी बात मानकर देखिए
यकीनन ! हर मसला सुलझ जाएगा ।
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