सोचता हूं की.....
ये संगम कैसे हो......
में पंछी-सा आवारा, वो "birdphobia" की पीड़ित बेचारी,
वो coffee के addiction की मारी, में गरम चाय की चुसकारी,
में सूरज सा गर्म मिज़ाज, वो संध्यासी शीतल है,
अरे छोड़ो यार ये संगम ही निर्थल है।।
पर.......
में उसके तलब - ए - दीदार में रोज सुबह निकलू,वो शाम में मेरे लिए जुल्फें लहराए।।
वो तीसरे पहर मुझसे मिले, में बाक़ी तीनों पहर उसे सोच मुस्कुराऊं,
अब न हमारी कहानी अधूरी होगी, चंद लम्हों के लिए ही सही पर वो हर रोज़ वो मेरी होगी ।।
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