वो मोहब्बत ही क्या जिसमें होश न हो,
वो प्यार ही क्या जिसमें जुदाई न हो।
वो दोस्ती ही क्या जिसमें दरारें न हों,
और वो ज़िंदगी ही क्या जिसमें रूहानियत न हो।-
shounak
(Shounak)
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Joined 23 May 2025
14 HOURS AGO
8 JUL AT 19:20
वो शाम थी दीवानी सी,
हम भी किसी से कम नहीं थे,
पर क्या उसकी नज़र में हम तो नहीं थे।-
15 JUN AT 15:18
राह ऐसी है कि हम फिसलते जा रहे हैं,
ख़ुद को संभालते-संभालते हम ही बिखरते जा रहे हैं।-
1 JUN AT 19:53
ज़िंदगी के इस सफ़र में हम कहीं खो से गए हैं,
खुद से दोबारा मिलने को हम बेइंतहा हो गए हैं।
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23 MAY AT 21:50
दिल के इस तन्हाइयों में बैठे रहे हम कहीं,
कब ज़िंदगी गुज़र गई, हम रूठे के रूठे रह गए।
ज़िंदगी गुज़रती जा रही है, और हम आज भी जीना सीख ही रहे हैं,
ख़ुद से रूठ कर, ज़िंदगी से ख़फ़ा हम हो रहे हैं।
जीना तो हमने शुरू ही किया था,
मुश्किलों का कारवाँ बढ़ता ही गया,
संभलते जा रहे हैं हम खुद को ही।
क्योंकि रूठ कर दो ज़िंदगी जी नहीं जाती।
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