अपनी ही सवालों में उलझा हुआ हूं सपने और हकीकत में फसा हुआ हूं उम्मीदों की कस्तियां तो मेरे कबकी डूब चुकी है पता नही किसी उम्मीदों में आज भी उम्मीदें सजाए बैठी हुई हूं ....
हम जख्मों को छुपा के आगे बढ़ते रहे दिल को बहलाने की कोशिश करते रहे जिंदगी ने तो पहले से ही गमों से साझीदारी कर आया हे और हम मुस्कुराहट की तलास में बाजार में घूमते रहे ....
चला जाऊं कहीं दूर ऐसी नजर ना आऊं फिर किसी को ढूंढे जब कोई मुझे मिल न पाऊं फिर वो किनारों को तस्वीर बन जाऊं ऐसा की न मिले खबर न पता कोई यादों की झील बन जाऊं ऐसी ढूंढे हर जगह पर में मिलूं नहीं....