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हम दुनिया से चाहे कितने भी चीखते हुए अपनी सच्चाई, अपनी अंतश की बाते क्यो न करते रहे, पर कोई हमारी नही सुनेगा. कोई हमारी आत्मा में झाँकना नही चाहेगा.
क्योंकि दुनिया वो सुनेगी जो उन्हे अखवार सुनायेगा
दुनिया वो देखेगी जो उन्हे टीवी दिखायेगा,
हम समाज के उस दौर से गुजर रहे हैं,-
पूस की ठण्ढी एक साँझ
जब ठण्ढी हवा अपनी पुरी तरुणाई में,
इतराती, बलखाती अपनी ही धुन में चल रही हो,
ऐसे में गर्म चाय की एक प्याली चाय हाथों में लिए,
रिक्त नजरों से आसमाँ को टकटकी लगाये देखना मेरा,
तेरी स्मृतियों का आभास कराता है,
ज्यों साँझ आगे बढती हुई काली रात में समा जाती है
त्यों ही मेरा हृदय चाय से उठते धुएँ में तेरे छवि को
ढूंढता हुआ तुझ तक पहुंच जाता है,
मेरे मन में उमड़ते घुमड़ते सारे ख्याल तेरे,
तुझमें समाने को विह्वल से होकर मचल जाते हैं,
सर्द हवा की कनकनी सी आहट मेरे चेहरे पर यूँ पड़ती हैं,
जैसे आहिस्ते से स्पर्श किया हो तुमने मेरे कपोलों का,-
गुजरते हुए पल से क्या शिकवा और कैसी शिकायत
कि करता भला कैसे वो हर किसी पर अपनी इनायत
हर एक लम्हा होता है स्वंय में ही एक कण सा
फिसलता फिसलता फिसल ही जाता है,
रेत सा हो जिसका स्वंय का अस्तित्व,
ठहरेगा भला कैसे किसी का होकर,
फिर भी जाते हुए भी
एक नई उम्मीद तो देकर ही जाता है,
हृदय के दामन में आशा की नवकीरण का,
अंकुरण कर ही जाता है,
अंततः यह तो समझा ही जाता है,
कि सुर्यास्त भी जरूरी है,
नव सुर्योदय के लिए..
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मृत्यु ही जीवन की पूर्णता है,
जीवन-पथ का निश्चित गंतव्य है,
शाश्वत सत्य अगर कोई तथ्य है,
संसार में, तो वो मात्र मृत्यु ही है,
जीर्ण होती साँसों की स्थिरता है मृत्यु,
शनैः शनैः कर मृत्यु-पथ पर,
अग्रसित होती हुई जर्जर साँसों का,
पूर्ण विराम है मृत्यु,
जीवन के गहन तिमिर में भी जो,
पारदर्शी, परिलक्षित प्रतिबिम्ब है,
वो मृत्यु ही है, वो मृत्यु ही है,
नितान्त ही असंभव, कल्पनातीत है,
मिथ्या प्रमाणित करना मृत्यु को,
सार्वभौमिक सत्य की परिभाषा ही है मृत्यु,
जीवन की परिपूर्णता ही है मृत्यु...!!
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ये जो माँए होती है न...
बहुत ही तहजीब से संभालती है अपने बच्चों को,
कहीं चोट न लगे, अपनी हथेली लगा देती है,
आँचल से अपने बच्चों के पसीना तक पोछ देती है
तरक्की में बच्चों की, खुश हो इतराती है,
परेशानी में भी मुस्कान बिखेर हौसला बढाती है
ये जो माँए होती है न...
बहुत ही तहजीब से संभालती है अपने बच्चों को,
आँसु आँखों में न आए बच्चों के,
इसके लिए लाखों जतन कर लेती हैं
गिरने से पहले ही हाथ देकर संभाल लेती है,
खुन पसीना एक कर देती है अपने अंश को खुश रखने में
ये जो माँए होती है न...
बहुत ही तहजीब से संभालती है अपने बच्चों को,
माँ सिर्फ दुलार करने वाली माँ ही नही होती,
जरूरत पड़ने पर स्नेह से माथे पर हाथ फेरने वाली बहन भी होती है,
शिष्टाचार, सभ्यता; संस्कृति सीखाने के लिए आँखे तरेर सख्ती दिखाने को पिता भी बन जाती है,
मन का हाल समझने को दोस्त भी बन जाती है,,
ये जो माँए होती है न...
बहुत ही तहजीब से संभालती है अपने बच्चोँ को,
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शाश्वत सत्य श्री राम का नाम है,
जहाँ राम नाम की गुंज हो, वहीं चारो धाम है,
धर्म के रक्षक, मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम है,
दुष्टों और अत्याचारियों का दलन कर, मानवता की रक्षा करने वाले, मानवता के पालनहार हैं,
सत्य और धर्म पर आधारित, निर्मल पावन गंगा सी ज्ञान है,
धर्म स्थापना हेतु स्वर्ण लंका भी ध्वस्त कर दे, वो श्रीराम हैं,
शबरी के जुठे बेर खाकर उसके आस और विश्वास को कायम रखे, वो श्रीराम हैं,
श्रीराम अपने भक्तों के वो भगवान हैं,
अहिल्या को शाप से मुक्ति दिलायें, ऐसे तारणहार हैं,
पत्थरों को भी पानी में तैरा दे, श्रीराम वो कृपानिधान है,
लोकहित की खातिर अपने सुखों का कर दे त्याग, ऐसे श्रीराम हैं,
वचनबधता के लिए सर्वस्व समर्पण कर दे, वो श्रीराम हैं,
श्रीराम सिर्फ नाम नही, पूर्ण विश्वास है, आस है,
क्रोध और अहंकार पर जिसने विजय प्राप्त किया,
अद्भुत सौंदर्य और अतुल पराक्रम का प्रतिरूप है,
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अद्भुत, अलौकिक नजारा है, आज चाँद से जा मिला तारा है...
आज चाँद में वो आभा समाई है ज्यों चन्द्रमुखी ने माथे पर चाँदनी की बिन्दिया सजाई है...!!!
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बारिस की महकती, सौंधी सी खुशबु,
बलखाती, बहकती, बहती ठण्ढी बयार,
उस पर मन में भ्रमण करती हजारों कल्पनाएँ,
असंख्य एहसासों यें घुले तेरी यादें और तेरी बातें,
ऐसे में स्वतः ही बेसब्र हाथों ने लिए कलम,
और सादे से पन्ने पर बिखेरे शब्दों के मोती,
और जो माला गुंथी गयी तुम्हारे एहसासों की,
वो स्वंय ही कविता बन गई...!!!!
शब्दों के ताने बाने में अक्श तुम्हारा बुनता गया,
और कविता मेरी तुम पर, यौवन की अंगडा़ई लेती गई..!!
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तुम बन जाओ मेरे प्रेम का बंधन,
मैं बन जाऊँ तुम्हारे प्रेम-बंध का मंथन,
प्रेम अपना पा ले वो पराकाष्ठा
रहे न हृदयों में कोई उलझन..
प्रेम सत्य सार्थक हो इस कदर
रहे न मन में कोई व्यथा,
समर्पण हो मन से मन का
रहे न उर में हमारे फिर तर्पण,
सर्वस्व समर्पण कर दे स्वंय का अर्पण
मिलन और वियोग मात्र हो संयोग
अपूर्णता की स्थिति न आए प्रेम में हमारे,
हमारे प्रेम की परिभाषा ही हो हम और तुम
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