अक्सर सोचती हूँ।
क्या होता अगर तुम होते..............
कहने को शायद बहुत अल्फ़ाज़ होते।
मुस्कुराते चेहरे पर बस तेरा नूर होता।
हजारों कहानियों का एक मुकाम होता।
अल्फ़ाज़ों की जगह शायद इशारों की भाषा होती।
मोहब्बत को दिखाने की नही महसुस करने की बारी होती।
काश तुम होते.... 🧡✨-
आजकल सीसे में देखकर खुद को संवारते बहुत हैं।......
लगता हैं नया चस्का लगा हैं आजकल हम मुस्कुराते बहुत हैं।-
मै शब्द नहीं एक आगाज हूँ।
एक पन्ना था जो कल ..
मै वो आज की किताब हूँ।।
मै मुफ़्त की उपलब्धि नहीं..
जीता हुआ ख़िताब हूँ।।
मै नदी का शांत जल नहीं..
लहरों सा उफान हूँ।।
मै शाम का सूर्यास्त नहीं..
सुबह की भोर हूँ।।
मै हिंदी सा सरल नहीं..
गणित का उलझा सवाल हूँ।।
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कितनी खुदगर्ज सी रीत हैं इस दुनियाँ की ......
अपना पीछे छुट जाएं तो भी कदम आगे बढ़ते हैं।।-
बीती काली रात को गुजारना पड़ता हैं।
अक्सर सूरज की नई चमक के इंतज़ार में।
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छिन लेती हैं हँसी कुछ बेरहम ख़ामोशीयाँ
वरना मुस्कुराना हर कोई बखूबी जानता हैं।।-
लूट लिया हैं खुदा जब सब कुछ तूने
अब किस बात की शिकायत करू।।
मिन्नते हजार कर ली तुझसे ख़ुदा।।
अब ये सजा किस ग़लती की काटू।।
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