चल पड़ी हूँ साथ तेरे
तेरी परछाई बनकर
के भले ही क़दम-दर-क़दम
तू न देखे मुझे मुड़कर
-
माँ पिताजी ने खुशियाँ मनाई
20 अप्रैल को दुल्हन बनी मैं
ख़ुशी के आंसू ... read more
चल पड़ी हूँ साथ तेरे
तेरी परछाई बनकर
के भले ही क़दम-दर-क़दम
तू न देखे मुझे मुड़कर
-
बड़े ही अज़ीब हैं यारों
ये किस्से ज़िंदगी के
कभी आती कामयाबी और
कभी नाकामी, हिस्से ज़िंदगी के
किसी के लिए खुशनसीबी की
ख़ूबसूरत सौगात हैं ज़िंदगी
तो किसी के लिए चार दिन की
चांदनी, फिर अंधेरी रात हैं ज़िंदगी
हर किसी का अपना अलग
अंदाज़-ओ-नज़रिया हैं जीने का
हर किसी के साथ घटी घटना
के अपने अलग अहसास है ज़िंदगी के
बड़े ही अज़ीब हैं यारों
ये किस्से ज़िंदगी के
कभी आती कामयाबी और
कभी नाकामी, हिस्से ज़िंदगी के
-
मोहब्बत भी मुझसे शिकायत भी मुझसे
के अदावत भी मुझसे रफ़ाक़त भी मुझसे-
मकर सक्रांति पर्व का होता गुण-गायन तब
सूर्य देव दक्षिणायण से होते उत्तरायण जब
जलार्ध्य करें शुद्ध-सात्विक मन से भानु को
तिल-गुड़ का दान में होकर धर्म-परायण सब-
मकर सक्रांति पर्व का होता गुण-गायन तब
सूर्य देव दक्षिणायण से होते उत्तरायण जब
जलार्ध्य करें शुद्ध-सात्विक मन से भानु को
तिल-गुड़ का दान में होकर धर्म-परायण सब-
सूर्य देव उत्तरायण हुए
मकर सक्रांति हैं आई
खेत-खलिहान हरे हुए
मानो हरित-क्रांति हैं छाई-
सूर्य देव उत्तरायण हुए
मकर सक्रांति हैं आई
खेत-खलिहान हरे हुए
मानो हरित-क्रांति हैं छाई-
जला कर रंज-ओ-गम
लोहरी की आग में
खुशियाँ ही खुशियाँ मांगे
हर किसी के भाग में-
जला कर रंज-ओ-गम
लोहरी की आग में
खुशियाँ ही खुशियाँ मांगे
हर किसी के भाग में-