कब से चुप्पीं कीं चादर ओढें,
खामोंश थी निगाहें..कुछ अरमांन है
दिल के कोनें में छिपाएं हूएं,
जब आ ही गयें हो सामनें ख्वाबों में..
निगाहों को निगाहों से,
दो पल बात कर लेने दो...
झलक देंखकर दिदार-ए-यार कीं,
दिल-ए-तमन्नां के अफसानें बनने दो...
S.B.Manwatkar..
- Shobha Bapurao Manwatkar
30 OCT 2019 AT 22:12