तेरे सिने में आरजू ए मेरी घुल सब जाए
मेरी शानो शौकत, इज्ज़त, आबरू और मैं
तेरे सिने से लगकर इस स्याह की सेहर हो जाए
फिर तुझमें ठहरकर खुदसे मिलू, मेरा अक्स, मेरी इबादत और मैं
©मी शब्दसखा-
🔱🙏🕉️भोलेनाथ...🕉... read more
कुछ यूं कमाल का असर मुझपर कर देता हैं
मेरे अंदर के सोए हुए शायर को जगा देता हैं
वो जो तुम पोछती हो पसीना माथे से
हैसियतसे ज्यादा खूबसूरत बन जाता हैं वो
बस तुम्हारी एक हलकी सी छूवन से
गिरते तुम्हारे झुमके से कभी पूछा हैं क्या दर्द उसका
बिछड़े हुए आशिक का सुरूर उसमें न जानें कहा से
आकर के ठहर सा जाता हैं जमीं पे अस्तित्व जिसका
पागलपन की तो हद पार कर गई वो बिरहन पायल तुम्हारी
जो खुद तो ख़ामोश होतीं हैं मगर बोलती हैं तब ही
जब पांव चलते हैं और साज का सामान बनकर रह जाती हैं बिचारी
तनहा यूं न छोड़ा करो तुम अपनी जुल्फों की लटों को तुम्हारी
घायल कर देती हैं अकेलेपनमें खुदके न जाने कितनो को बावरी
होता यूं बेअदब अंदाज़ उसका जैसे अधूरी रात हो गालोंपर ठहरी
न उम्मीद जताई न कभी इज़हार किया हैं ख़ामोश निगाहों ने मेरी
क्या करें कमबख्त शब्दोंका सखा बेचारा हैं कातिलाना हरेक अदा जो तुम्हारी
©मी शब्दसखा-
Detach yourself from those moments
And start reliving normal life again ahead..
With new self and what not to believe that
Everything seems to be Okay one day at least..
© Mee शब्दसखा-
तेरी निगाहों के उतरकर हो गए
गुसार बन गए है हम रकीब
तुनें क्यों जाना ना
तुनेंं क्यों सोचा ना
ये क्या हो गए हैं हमनसीब
थमी हैं जिसपे साँसे
नमी हैं जिससे आँखें
वो राह चल चुके हैं अब अजीब
तू था तू हैं भी
मैं था मैं हूं भी
न साथ चल रहे फिरभी अब करीब
©मी शब्दसखा-
तसवीरें क़ैद हैं तयखानो में दिल के
कबसे एक उम्मीदसे भरी जिंदगी की
उनको जैसे शक़्ल तुम्हारे आ जाने से मिली हैं
और यक़ीन क़ुरबत पर फ़िरसे हुआ हैं सखा
की तेरी इब्तिदा खाली नहीं गई
©मी शब्दसखा । शंकर-
रोज़ आकर गलेसे लग जाते हैं
जब छोटी से छोटी चीज़ दोहराते हैं
रोज़ाना औऱ गहरा घाव सिनेमें लेते हैं
और झूठी मुस्कान चेहरे पर ले आतें हैं
©मी शब्दसखा-
अकेले मायूस बैठे इंसान को उस दिलकी हालत को
बहोत आसान हैं कहते हैं लोग ज़िंदगीमें आगे बढ़ने को
कभी जाके कोशिश करो तो समझ जाओगे
शाख से टूटे पत्तों की ज़िंदगी आसान नहीं होती जीनेको
©मी शब्दसखा-
तुम्हें पाने की चाहत में हम इस क़दर खो गए हैं
तुम साथ तो हो मग़र तुम्हें लिख़ने में उलझें हुए हैं
©मी शब्दसखा-
तनहा रोज़ बिस्तर पर
रिहा किया करतें हैं
हम गीली सर्द खुली
आँखों में दिनभर
जिन्हें संजोया करतें हैं
©मी शब्दसखा-
The bag which was not so big but full of happiness & joy which Papa used to bring to home at every Diwali night and we used to get equally divided sweets & firecrackers from the box among ourselvesby Maa & Papa..!!🥺😍🎆🎇✨🎉
I wish such division of joy, happiness & life could have been continued till date..!!🥺🙏
©Mee_शब्दसखा-