माय तुझ्या त्यागाची ओवी गाईन
तुझ्याच त्यागाने उभ्या भीमबाबाची
वाट चालत जाईन
तू शेण्याचां रचून गाडा रचला माय भीमवाडा
भाकरी माझ्या भीमाची तुझ्या घामाची
लढायला बळ देई
रमेशदाच्या मढ्यावरचा पदर माय तुझा
मी क्रांतीचा झेंडा बनविन
त्याच ओच्याखाली माय माणूस घडविन
ज्या हातानं माझा भीम सावरला
त्याच हाताला माझी ढाल बनविन
मुक्तीच ग सपान पाहत तुझा कुशीत निजेन
शमिभा
७/०२/२०-
धरती गोल है-
सो
लाज़िम है
कि
दूर जाता व्यक्ति
करीब आ जायेगा एक रोज़।।
किताबगंज-
वक्त के साथ तेरा गुरुर भी तोडेगें
तेरे झूठे चेहरे का नकाब इस तरह उधेडेगें
कि तेरे हालात पर तूझे खूद भी रोना ना आयेगां
इस कदर तुझे बेबस करके छोडेगें-
अच्छा हुआ तूने सबक सिखा दिया मुझे
मतलबी दुनिया मे बेमतलब के रिश्ते ढुढंने चले थे
हम हद से ज्या अच्छे बनने चले थे…
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ये भी हिम्मत न हुई पास बिठा के पूछें
दिल ये कहता था कोई दर्द का मारा होगा
लौट आया है जो आवाज़ न उस की पाई
जाने किस दर पे किसे जा के पुकारा होगा
याँ तो हर रोज़ की बातें हैं ये जीतें मातें
ये भी चाहत के किसी खेल में हारा होगा
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जो फरेब मैने खाये तुजे राज़दार समझ कर
उनसे कैसे भूल जाऊ एक दासता समझ कर..
मुझे गौर से ना देखो मै वो ना-मुराद दिल हू
जिसे तूने रोंद्ध डाला एक बे-जुबा समझ कर..
ना मिटाओ ठोकरों से ये मज़ार है किसी का
जरा रहम कर ख़ुदाया किसी ना निशा समझ कर..
अरे ओ जलाने वाले वो तेरा हे था नशेमंन
जिसे तूने फूक डाला मेरा आशिया समझ कर..
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आज तेरा शहर अनजाना सा लग रहा था…
जिस गलियो से हम मुहब्बत कि आती थी खूशबू
आज वो गलियारा रुखा रुखा सा लग रहा था…
हर कोने पे ढूढं रही थी नजर
कही दिख जाओ भीड मे
तो आँखो को सुकून मिलेगा
पलभर कि झलक से अगले कई साल बीत जाते थे
ऐसा लगता है सदिया बीत चूकी हो जैसे तुम्हारा
दिदार किये …
आवाज तो जैसे कही फरिश्ते निंद मे कानो गुनगूनाये थे कभी
शायद अब ये फासला सदियो तक चलेगा
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थोडा रहम तो दुश्मन भी कर लेता मेरा कत्ल करते वक्त
मेरा तडफडाना देंख कर…
लेकिन जिसे जान कहा था वो जां ले गया मुझे तडफ देकर-
मै जो हू ना 'शमिभा' हू जनाब
और इस बात का जरा लिहाज किजीएगां-
किती अर्थहिन आहे ना
माझ्या
कवितेच्या ओळीचा
जन्म
माझ्या मनात,
तुझा
उल्लेखाची
दखल न घेता
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