Shlok Shrivastava   (Shlokji)
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"आए हो तो पढ़ के ही जाना
कुछ रचनाएँ मेरी
शायद मेरे अल्फाज़ तुम्हारी दास्तां कह दें"
Joined 9 November 2018


"आए हो तो पढ़ के ही जाना
कुछ रचनाएँ मेरी
शायद मेरे अल्फाज़ तुम्हारी दास्तां कह दें"
Joined 9 November 2018
14 JAN 2022 AT 14:00

पतंग उड़ायेंगे
तिल के लड्डू खाएँगे
मेला जाएँगे
जम के भंगड़ा पाएँगे
संक्राति का त्यौहार हम
मिलकर मनायेंगे

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20 SEP 2021 AT 13:53

जब से तुझसे मिला हूँ मैं तो
तेरा तब से हो बैठा
मेरे दिल के कोने कोने में
अब तो तेरा ही अक्स छिपा
आँखें खुली हों या हों बंद
अब तू ही सामने होती है
सबके लिए हैं दिन और रातें
मेरे लिए तू होती है
मेरे होंठों से लफ्ज़ जो निकलें
बस तेरी ही बातें होतीं हैं
अब मेरे हर एक अंग अंग में
तू कतरा कतरा रहती है

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16 SEP 2021 AT 9:35

पल पल बदल रहे हैं लोग
तुम्हें भी बदलना पड़ेगा
समय तो चल रहा अपनी गति से
तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा

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14 SEP 2021 AT 9:58

हिंदुस्तान की शान है हिन्दी
हर भारतीय की पहचान है हिन्दी
मातृभूमि की जान है हिन्दी
लेखक का अभिमान है हिन्दी
साहित्य जगत की मान है हिन्दी

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9 SEP 2021 AT 23:43

कितनी भी कोशिश कर लूँ मगर
नींद नही आती
उसका ख्याल तो आता है
लेकिन वो नहीं आती

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31 AUG 2021 AT 18:51


आँखे भी अब शिकायत करती हैं
पैरों से
क्यूँ नही जाते अब उस गली तुम ?

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8 AUG 2021 AT 21:43

तो शायद आज जिंदा होते

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29 JUL 2021 AT 22:41

लोग कहते हैं तुम बदल गए हो लेकिन
मैं बदला नही हूँ, बस बदला लेने लगा हूँ

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9 JUN 2021 AT 17:49

मोहब्बत को खुदा भी कम कर न पाया
दो जिस्म जुदा कर दिया ,लेकिन दिल जुदा कर न पाया

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6 JUN 2021 AT 15:23

तूने ही दिये हैं दर्द इतने
अब तू ही कोई दवा देदे
यदि न दे सके दवा तो
औरों की तरह दगा देदे

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