प्रेम तो शुद्ध होता है... शत् प्रतिशत खरा...
जिसमें न छल होता है,ना दिखावा
न पा लेने की आशा,न खो देने का भय
प्रेम निस्वार्थ होता है,
जिसमें कोई आरजू नहीं होती
क्योंकि प्रेम में जब-जब कोई मांग उठेगी,
इसका तार-तार होना तय है।
प्रेम में प्रेमी की यादों का आना भी दिनचर्या का सबसे सुखद एहसास होता है,
प्रेम वो है जहां संवाद भी,आवश्यक नहीं होता
मौन होने के बावजूद प्रेमी के दिल का हाल जानना कठिन नहीं होता।
प्रेम में प्रतीक्षा है,शर्तें नहीं।
प्रेम में उम्मीदें है,हसरतें नहीं।
प्रेम में फिक्र है, कोई सरहदें नहीं।
प्रेम में होती है 'हम' की आरजू,'मैं' की ज़िद नहीं।।
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