नम हवाएं छूकर जो मुझे गुजरी
लगा यूं के जैसे वो तुम ही थी-
मगर लबों पे हमारा ज़िक्र है इतना काफ़ी है❣️
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ओर कब तक यूं ही उधारी में काम चलाना है
ये ज़िन्दगी, सांसें, लम्हें इक न इक दिन थम जाना है-
यार थोड़े से पुराने हैं मेरे,
थोड़े से शौकीन थोड़े से दीवाने हैं मेरे-
अब आईने भी संवर रहे हैं तुम्हें देख कर
आख़िर ऐसा क्या जादू कर दिया तुमने इन पर-
एक तरंग सा बहता मन मेरा
ज़िंदगी की तंग गलियों में,
ना समझ है बेचारा कितना
कोई खोंफ नहीं है इसको ,
रोक नहीं पाया कोई इसको
ज्ञानेन्द्रियो के वश में यह है,
चलता है कभी यहां, कभी वहां
हाय रे ये चंचल बहुत है।-
हमने दुखों की लकीर मिटा डाली
हमने माँ लिखा और तकदीर बदल डाली-
उसे मालूम नईं ये दिल कैसे संभलता है
उसके सीने में जो दिल है,
उस दिल पर भी, इक दिल धड़कता है-
तड़प मेरे दिल की....
तड़प मेरे दिल की तुमने न जानी
इश्क़ था बे हिसाब तुमने न मानी
करवटें बदलती रही रातें तेरी भी
नींदों में हों ख़्वाब तुमने न मानी
अधूरे हैं पन्ने यादों में तुम्हारे लिए
भर जाने को बेताब तुमने न मानी
हर चेहरा इश्क़ के काबिल नहीं मिरे
पहने होते हैं नक़ाब तुमने न मानी
नशा ख़ूब है उसके आंखों में "सोनू"
बढ़कर नहीं है शराब तुमने न मानी-
तेरा गुरूर करना भी लाज़िमी है
क्यूंकि चांद को भी अपने ख़ूबसूरत होने पर नाज़ था।-