Shivv   (Invented shayari)
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Joined 6 February 2019


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9 FEB 2022 AT 0:43

एक उलझन कम नहीं होती,
काश! ज़िंदगी बेरहम नहीं होती,

वक़्त की रफ़्तार भी कम नहीं होती,
क़िस्मत भी साथ हरदम नहीं होती,

अब तो आँखें भी नम नहीं होती,
हर दवा भी दर्द का मरहम नहीं होती।— % &

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5 FEB 2022 AT 4:25

ज़िंदगी को ग़र परीक्षा समझोगे,
तो पास कैसे हो पाओगे,

ज़िंदगी का स्वाद जब चखोगे,
तभी उसका आनंद उठा पाओगे,

ज़िंदगी को ग़र सवाल समझोगे,
तो और भी उलझते जाओगे,

ग़र जवाब समझोगे,
तो बेहतर विकल्प पाओगे,

ज़िंदगी को ग़र मुश्क़िल समझोगे,
तो आसान कहाँ बना पाओगे,

ज़िंदगी को ग़र जंग समझोगे,
तो लड़ कैसे पाओगे,

ज़िंदगी को बस ज़िंदगी समझोगे,
तो ज़िंदादिली से जी पाओगे।

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5 FEB 2022 AT 3:40

तकलीफ़ ज़्यादा कब होती है ?


किसी को भुलाने में या किसी को चाह के भी ना पाने में,
दुःख में भी मुस्कुराने में या मुस्कुरा के दुःख सह जाने में,

ख़ुद रो कर किसी को हँसाने में या किसी हँसते को रुलाने में,
दूसरों से नज़रें बचाने में या ख़ुद से नज़रें मिलाने में,

किसी रिश्ते में ख़ुद सुनने में या सामने वाले को सुनाने में,
ज़िंदगी बर्बाद हो जाने में या बर्बाद ज़िंदगी को जिये जाने में।

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31 JAN 2022 AT 1:29

अपने चाँद की बातें करूँ या आसमां के चाँद से बातें करूँ,
समझ नहीं आता, मोहब्बत के रंग भरूँ या जुदाई से डरूँ।

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31 JAN 2022 AT 1:16

जब तेरे न होने पर सिर्फ़ तेरी यादें रह जाएंगी,
तब हमारी भी चाँद से नज़दीकियाँ हो जाएंगी,

ऊपर वो! ज़मी पर हम, फ़क़त ख़ामोशियाँ गुनगुनाएँगी,
तन्हा रातों में इंतज़ार की घड़ियाँ टिक-टिक करती जाएंगी।

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30 JAN 2022 AT 18:39

इश्क़ वो गुलदस्ता है,
मुरझाए फूल भी जिसमें हम खिलाकर रखते हैं,

मुक़म्मल हो न हो इश्क़,
उन फूलों की महक ज़हन में बसा कर रखते हैं।

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20 DEC 2021 AT 9:51

मेरे सपनों को अब नहीं तोड़ पाओगे,
मैं अब ज़िंदगी को हक़ीक़त में जी रहा हूँ,

अब कौन सी दवा दोगे मुझे दर्द की तुम,
मैं कबसे इस दर्द को दवा बना के पी रहा हूँ।

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3 SEP 2021 AT 1:44

वक़्त और हालात के आगे, आख़िर कौन आजतक झुका नहीं,
कोशिशें हज़ार कर लें हम, मिलता कहाँ वो जो क़िस्मत में नहीं।

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3 SEP 2021 AT 1:27

लम्हों की ग़ुज़ारिश है, जाए न तू दूर क़भी,
कल की ख़बर किसे, बस मेरी है तू अभी,

सीने से लगाऊँ तुझे या दिल में छुपा लूँ,
कर रहीं सवाल दिल की धड़कने सभी।

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26 JUL 2021 AT 0:04

तुम वो सच हो जिसे झुठला नहीं सकता,
तुम वो राज़ हो जिसे बतला नहीं सकता,

तुम वो ख़्वाब हो जिसे हक़ीक़त बना नहीं सकता,
तुम वो गीत हो जिसे गुनगुना नहीं सकता,

तुम वो फूल हो जिसे बाग़ में ख़िला नहीं सकता,
तुम वो यादें हो जिसे भुला नहीं सकता,

तुम वो मंज़िल हो जिसे पा नहीं सकता।

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