3 MAY 2018 AT 18:27

ग़ज़ल # #

ज़िंदगी तो सभी ने पाई थी,
रूह सबकी मगर पराई थी,

क्या तदारूक मौत का करता,
ये तो ख़ुद यज़्दाँ ने बनाई थी,

जी रहे है उधार लेकर सब,
बात ये शेख ने बताई थी,

आ गयी बात सब्र की दिल में,
इसके आगे भी क्या लडाई थी,

चन्द लफ़्जों में मर गयी है जो,
मुख़्तसर सी ये दास्ताँ-सराई थी,

हो गया जिस्म राख में तब्दील,
दूर मुझसे तिरी रसाई थी,

वक़्त ए रूख़सत यहाँ से जाते हुए,
उसने पकडी मिरी कलाई थी,

SOM........© 'अनवर' पीलीभीती

- Shiv om Misra 'Anwar'