हुई है सर्फ़ मिरी जाँ उसे बनाने में
हुआ है तब कोई चेहरा निख़ार के क़ाबिल
Shivom Misra-
कुछ बात है लबों पे जो मोहर-ए-सुकूत है
गहरे हैं राज़ चुप की सदाओं के इर्द-गिर्द
Shivom Misra-
कर के इक रात की ताज़ीम मिला क्या क्या कुछ
दिल गया जान गयी और गया क्या क्या कुछ
गुल बदन माहजबीं ज़हरा-जबीं जाने जिगर
तेरी आमद पे सितारों ने कहा क्या क्या कुछ
बेवफ़ा अहल ए जफ़ा अहल ए सितम और सय्याद
नाम के आगे मिरे जोड़ दिया क्या क्या कुछ
खोले हैं जब से ख़यालात के उलझे धागे
इक उदासी के दरीचे से खुला क्या क्या कुछ
बद-हवासी ग़म ए तन्हाई दुआ ए वहशत
दिल लगाने की मिली हम को सज़ा क्या क्या कुछ
Shivom Misra-
जख़्मों की यूँ न होती मुसलसल नुमाइशें
आँसू अगर जो करते इन आँखों की इज़्ज़तें
Shivom Misra-
यूँ बे-पनाह मोहब्बत के सिलसिले न गए
फ़रेब खा के भी जीने के हौसले न गए
उठाए बोझ भला कौन पासबानी का
मुजस्समे तेरी सूरत के फिर रखे न गए
हुआ है ख़त्म ज़माने से वालिहाना इश्क़
मोहब्बतों के नए बाब फिर लिखे न गए
Shivom Misra-
ख़ूबसूरत है प्यार की ये बात
कब ,कहाँ , कैसे , क्यूँ , हो जाता है?
Shivom Misra-
खोले हैं जब से ख़यालात के उलझे धागे
इक उदासी के दरीचे से खुला क्या क्या कुछ
Shivom Misra-
हुआ है ख़त्म ज़माने से वालिहाना इश्क़
मोहब्बतों के नए बाब फिर लिखे न गए
Shivom Misra-
अपनी उम्मीद ओ बीम के माबैन
तुम को माँगा है किस तरह हम ने
Shivom Misra-