खुद को किसानों का हितैषी कहने वाली सरकार आज किसानों को ही अपनी बात रखने, सरकार द्वारा किए हुए वादे को याद दिलाने, जिसे 3 साल से सरकार भूल पड़ी थी के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन करने से रोकने के लिए एक तरफ बॉर्डर बार बैरिकेटिंग, कटीले तार, और सड़कों पर कीले बिछाकर और दूसरी तरफ किसान संगठनों से बातचीत का प्रयास करके सरकार ये दो मुंहा काम कर रही है। इससे तो साफ हो जाता है कि सरकार किसानों को MSP की गारंटी नहीं देना चाहती हैं। 2021 में सरकार ने MSP गारंटी का जो लॉलीपॉप दिया था, वह महज एक छलावा था। सरकार का दिल्ली के सीमा पर किसानों के साथ ये जो व्यवहार किए जाने की तैयारी हैं, वह बेहद ही निंदनीय हैं। ये लोकतंत्र की सरेआम हत्या है जहां लोगो को अपनी मांग रखने की जगह न मिले, उनके साथ विद्रोहियों जैसे व्यवहार किया जाए और उससे भी बड़ी बात सरकार किसानों से वादा करके उसे भूल जाए। सरकार उद्योगपतियों के लाखों करोड़ो रुपए माफ कर सकती हैं, परंतु देश के अन्नदाताओं को उनकी लागत के न्यूनतम मूल्य की गारंटी नहीं दे सकती हैं। ऐसे किसानों की हितैषी सरकार हमने अभी तक नही देखी। धन्य हो किसानों की हितैषी सरकार।
भाषा नदी की धार सी,
निरन्तर बढ़ती चली जाती हैं।
जब तक कोई सैलाब न आ जाए,
पर्वतों को उखाड़-उखाड़ कर,
वनों को चीर-चीर कर,
मैदानों को रेत सा बहाकर।
जब मानसून चला जाता है,
पर्वत स्थिर होने लगते हैं,
वन हरे-भरे से हो जाते हैं,
और मैदानों को समतल करके,
कागज पर स्याही सी बहती हैं।
मार्ग में आए जब कोई बाधा,
एक नया मोड़ लेती वह व्याधा।
फिर से बढ़ चलती हैं,
नये गगन में, नये चमन में,
नयी रूप सी, नये बसन्त में,
नयी कली सी, नये वतन में,
नयी चमक सी, नये जनम में।