कलमकार.....   (शिवमणि"सफ़र”(विकास))
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Scholar and writer
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
Joined 2 April 2019


Scholar and writer
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
Joined 2 April 2019

बेमन से गया व्यक्ति
लौट आता है,
कभी न कभी।

वो नहीं लौटता है,
जो तय करके गया हो,
कभी न वापस आन को।

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30 OCT 2024 AT 21:36

त्योहार
=====

जैसे लौट आती हैं, चिड़ियां
हर सांझ को,
अपने घोंसलों में।

वैसे लौट आते हैं, वो लोग
हर त्योहार,
अपने घर की ओर,
अपने जड़ की ओर,
जो बेमन से गये थे,
सिर्फ अपने तन से गये थे।

और जो लोग,
घर नहीं लौट पाते हैं,
वो महसूस कर पाते हैं,
कि त्योहार अकेले का नहीं होता है।
यह अपनों का होता है,
यह अपनों से होता हैं।
घर-परिवार,
दोस्त-यार,
रिश्ते-नातेदार।

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28 MAR 2024 AT 18:00

कविताएं और कुछ नहीं,
खुद से बातें करना हैं,
खुद से मुलाकातें करना हैं।

जिसके पास नही होता है,
कोई बात करने को,
या उसको सुनने को।

वह बोलने लग जाता हैं,
खुद से ही,
खुद के बारे में,
औरों के बारे में,
बस ऐसे ही बनने लग जाती हैं,
कविताएं।

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15 MAR 2024 AT 20:21

सवाल के घाव


कुछ लोग तलवार उठाते हैं
और कुछ लोग सवाल,
तलवार के घाव भर जाते हैं,
कुछ दिनों या
महीनों या
सालों में।

पर सवाल के घाव,
कभी नहीं भरते हैं।
वो चोट इतना गहरा करते हैं,
इतना असरदार करते हैं,
कि लोग तब तक सम्भल नहीं पाते,
जब तक वो सही जवाब तक न पहुंच जाएं।

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13 FEB 2024 AT 12:06

खुद को किसानों का हितैषी कहने वाली सरकार आज किसानों को ही अपनी बात रखने, सरकार द्वारा किए हुए वादे को याद दिलाने, जिसे 3 साल से सरकार भूल पड़ी थी के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन करने से रोकने के लिए एक तरफ बॉर्डर बार बैरिकेटिंग, कटीले तार, और सड़कों पर कीले बिछाकर और दूसरी तरफ किसान संगठनों से बातचीत का प्रयास करके सरकार ये दो मुंहा काम कर रही है।
इससे तो साफ हो जाता है कि सरकार किसानों को MSP की गारंटी नहीं देना चाहती हैं। 2021 में सरकार ने MSP गारंटी का जो लॉलीपॉप दिया था, वह महज एक छलावा था।
सरकार का दिल्ली के सीमा पर किसानों के साथ ये जो व्यवहार किए जाने की तैयारी हैं, वह बेहद ही निंदनीय हैं। ये लोकतंत्र की सरेआम हत्या है जहां लोगो को अपनी मांग रखने की जगह न मिले, उनके साथ विद्रोहियों जैसे व्यवहार किया जाए और उससे भी बड़ी बात सरकार किसानों से वादा करके उसे भूल जाए।
सरकार उद्योगपतियों के लाखों करोड़ो रुपए माफ कर सकती हैं, परंतु देश के अन्नदाताओं को उनकी लागत के न्यूनतम मूल्य की गारंटी नहीं दे सकती हैं।
ऐसे किसानों की हितैषी सरकार हमने अभी तक नही देखी।
धन्य हो किसानों की हितैषी सरकार।

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2 FEB 2024 AT 19:25

ये जो तुम नज़र को बेनज़र सा रखते हो,
हमें पता हैं तुम फिर भी ख़बर रखते हो।

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30 JAN 2024 AT 18:15

दोस्त
=====
दोस्तों के साथ रहकर ही
तुम समझ पाते हो
कि तुम जिंदगी के
किस मोड़ पर खड़े हो।

दोस्तों के साथ रह कर ही
तुम ये जान पाते हो
कि तुम्हारी जिंदगी में
अपना कौन है, पराया कौन है।

दोस्तों के साथ रहकर ही
तुम एहसास कर पाते हो
कि जिंदगी में
सुकून क्या है दर्द क्या है।

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27 JAN 2024 AT 18:44

भूख

भूख के बाद ही आवाज है,
भूख के बाद ही अल्फाज है|

भूख के बाद ही साज है,
भूख के बाद ही नाज है|

भूख के बाद ही यार हैं,
भूख के बाद ही खुमार है|

भूख के बाद ही प्यार है,
भूख के बाद ही दुलार है|

भूख के बाद ही हसीं है,
भूख के बाद ही खुशी है|

भूख के बाद ही नींद हैं,
भूख के बाद ही ख्वाब है|

वरना जब तक भूख हैं,
सब कुछ एक बुरा सुलूक है|

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24 JAN 2024 AT 18:40

लबों से लब मिले, और नजरों से नज़र।
तुमको यूं देखकर हम हो रहें हैं बेखबर।।

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12 DEC 2023 AT 10:28

छोड़ो, चलो एक नया ख़्वाब देखते है,
मेरा होना, मेरे होने के बाद देखते है।

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