नदियों के किनारे बैठकर लहरों को देखा करोगी,
इन आंधियों से तुम हवाओं का पता पूछा करोगी,
वफ़ा करने वाले लड़के से जो कि है बेवफाई,
तो बता दूं तुम्हें, अब आंसू है उसकी महबूबा घर है उसका तन्हाई।
सर्द रातों में जब भी रजाई ओढा करोगी,
बगल में जिस्म होगा रकीब का खुशबू मेरी सूंघा करोगी,
रुई रजाई की अब भी वफ़ा का दामन ओढ़ी होगी,
बगल में रखी फूलदानी कहानियां मेरी कहेगी।
कमरे की खमोशी का भी ध्यान रखना तुम,
सिरहाने रखे तकीये की आहें भी सुनना तुम,
हक है तुम्हें भूल जाओ मेरी पाक मोहब्बत,
हक है तुम्हें भूल जाओ वो साथ मे की इबादत,
बस याद रखना तुम ये जालिम सी बेवफाई,
तुम मैं और ये तुम्हारी दी गयी रुसवाई।।
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