शिवम् गुप्त   (शिवम् गुप्त)
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Joined 5 September 2019


Joined 5 September 2019

जहर हो तुम, बैन हो जाओ
मै तो न तुम्हे भूलूंगा
जब मरना होगा
 तो तुम्हे छू लूंगा

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मदहोशी फुर्र हो जाए
कोई ऐसा प्याला पीना चाहता
मुर्दों के शहर में जीना चाहता हूं
रश्म अदायगी होती गर रिहाई की
तो मैं डर जाता
सजा ए मौत न सुनाते तुम फरमान में
तो मैं मर जाता

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आलोचना करना
ही सहायता है

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क्यों लगता है तुमको
पौरुष का साथ मिले तो वैभव है
कोमल हाथो को
कोई निष्ठुर हाथ मिले तो वैभव है
प्रेम प्रगट हुआ है तुमसे
वो लिप्त है वासना में
तुम निष्कपट निष्कलंकित
बचो दुसाशन की ग्रासना से
तुम गंगा सी शीतल पवित्र
नालो के दुरदर्श से
सिंहनी होती नहीं कलुषित
स्यारों के स्पर्श से
माथे की बिंदी हो तुम
स्वयं का भान करो
चरण पादुका बनकर
तुम स्वयं मत नारी का अपमान करो
शब्दों की क्या क्षमता
कर पाए तेरा गुणगान
तुम हो भारत माता
नमन करे पूरा हिंदुस्तान

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मैं जो देख रहा हूं
वही लिख रहा हूं
जो लिख रहा हु,
वही सुना रहा हूं
बस यही एक काम है
जो मै कर रहा हूं।

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15 OCT 2024 AT 22:40

आभूषणों से लदी स्त्री अपने सौंदर्य से
आकर्षित नहीं करती मुझे
विचलन पैदा करतीं है
गुलामी की ये स्वर्ण जंजीरें ।

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30 SEP 2024 AT 19:33

कोई वादे करके मुकर जाता है जब;
ठग लेता है तुम्हे,सड़क सुरक्षा निगल जाता है जब।
लपक कर दबोच लेने को मन नहीं करता तुम्हारा;
उसके गले में नख़,
भोंच देने को मन नहीं करता तुम्हारा।
धरती में पैर पटकर भूकंप नहीं ला सकते क्या;
बाहें उठकर भाषणों में, हड़कंप नहीं मचा सकते क्या?
भृष्ट व्यवस्था को उठाकर पटकने को नहीं मचलते;
भ्रष्टाचारी नरभक्षी को,सदेह खा कर गटकने को नहीं बिचरते।
नहीं कहता हृदय, मुट्ठी भीच लेने को;
हांथ डालकर अंतड़ियों में, जठर खींच लेने को।
तो फिर जवानी के उपहार का, उपहास हो तुम;
सच कहता हूं, चलती फिरती लास हो तुम।।

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स्त्री की ऊंची आवाज से,
समाज अपने पौरुष पर चोट महसूस करता है।

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19 SEP 2024 AT 19:21

अज्ञान के कारण कल्पना जन्म लेती है
अधूरा ज्ञान कल्पना का पोषण करता है।

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12 SEP 2024 AT 20:31

हमारी पीढ़ी के पिता
' पिता' नहीं ' शासक' है
बस उनकी सीमाएं परिवार हैं

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