गंग भरे केश पर भुजंग धरे कंध पर भंग की उमंग में तंड है रचाए चंद सजे मुकुट में अंब रचे भृकुटी में छंद हैं स्कन्द युक्त रंग चढ़े भक्ति में मुंड है नचाए उमंग बढ़े शक्ति में दंग सब पतंग देख बजरंग रूप धाय द्वंद्व ठने असुर कभी फंद फसें सुर सभी क्रंद में हैं इन्द्र जब अड़ंग शिशु शूल से फसंद हैं सुलझाए अपंग किये त्रिशूल से मुंड जोड़ मंतग का वक्रतुंड बनाए। चामुंड के निर्वाण में भरुंड मचा ब्रह्मांड में मुंड गिरा कुंड मध्य प्रचण्ड है मचाएं।।
मुझको भी देखकर ,युवतियां मुस्काती हैं; स्नेहिल नज़रों से पास बुलाती हैं। मां तू चाहती है, मैं दुल्हन व्याह कर लाऊं; हर कीमत देकर डोली सजाकर लाऊं। आने को वो तैयार है, सम्मान मांग रही है; नाम उसका आजादी है मां, बलिदान मांग रही है।।