खुद को ही ढूंढते ढूंढते ।
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एक किस्सा सुनाती हुँ , सर्दी का
ओस के बीच से झांकते सूरज का ।
एक टापरा और उसकी चाय का !
अर्सों बाद , दो यार टकराये,
कुछ पुराने शिकवे आमने सामने आए ।
न रुठना मनाना हुआ,
न गिले मिटाना हुआ ,
बस एक सवाल,
"साब , चाय के साथ पकोड़े लेंगे? "
और पुरानी यारी से मजबूर दोनों ,
एक हाँ में मुस्कुरा दिए,
और उस ठंडी दोपहर में ,
बस दो चाय की प्याली,
पकोड़े , चटनी और
ढेर सारी बातें ,
एक नई दोस्ती और पुरानी यादें ।
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आदत से मजबूर हम दोनों ही हैं,
पर वो ये मानता नही,
इश्क़ सिर्फ मुझे ही नहीं, उसे भी है,
पर वो ये जानता नहीं।
तो क्या हुआ, अगर सिर्फ मैं उसे ताकती हूँ,
वो भी तो मुझसे नज़रें चुराता नहीं।
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अब तुम्हारे इश्क़ ने तबाही मचाई है,
तो, सब तबाह हो जाने दो ।
तुम सिर्फ इतना करो,
की मुझे शर्माते देख लिया है तुमने,
अब तुम अपनी आँखों को भी मुस्काने दो।-
एक लंबे अरसे से खुद से,
दूर रखे हैं मैंने,
कागज, कलम और स्याही,
डर है,
की जो इजहार- ऐ- मोहब्बत करने से मैंने आँखों तक को रोक लिया था,
वो इनसे लिखे लफ्जों से तुझे तक पहुँच न जाए।-
जमाने की सोच :
लड़के गोरे या साँवले होते हैं,
लड़कियाँ गोरी या काली होती हैं ।
लड़के या तो कमाउ होते हैं,
या फिर नालायक।
लड़कियाँ या तो मौन होती हैं,
या फिर बदतमीज़ ।
क्यों??-
ये तुम्हारी अनकही मोहब्बत का असर है,
या फिर मेरी दुआओं का,
अब देखो न,
मुझसे दूर जाने की कोशिश करते करते,
तुम मेरे ही करीब आ रहे हो।-
(२)
सफर ज्यादा लंबा न हो जाये,
जरा ख्याल रखना,
तुम मिलना मुझे आखरी मुकाम पर
मेरे सब्र का एहतराम रखना।-