मैं अपने दस्तों के नक्श सारे मिटा रहा था
बदन समंदर पे लब की नौका चला रहा था
त्रिदेव मिलकर के सृष्टि जब ये बना रहे थे
मैं देवदासी के गेसुओं में नहा रहा था
पलक टिकाए ज़हीन लड़की अना थी मेरी
सो दुनिया-दोज़ख की आग से मैं बचा रहा था
वगरना दोनों ने साथ देने की कस्म ली थी
प मैं अकेले ही अपनी अर्थी उठा रहा था
ये नील खाबों के सब परिंदों की चहचआहट
मुझे लगा मुझको कोई अपना बना रहा था
मैं सारे होश ओ हवास खो बेलिबास होकर
उस इक परीज़ाद के बाजुओं में पड़ा रहा था
था दर्द इतना लबों में उसके के खुद ही अपना
बदन खुरच मैं हर एक बोसा छुटा रहा था-
स्याही के सहारे बात मन की हो जान... read more
नींद की और न ख़्वाबों की ज़रूरत है मुझे
आज सहरा में सराबों की ज़रूरत है मुझे
वो जो अच्छे हैं मुझे उनसे कोई काम नहीं
सच कहूँ यार खराबों की ज़रूरत है मुझे
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स्वच्छता : नहाने और दाढ़ी बनाने को महत्ता क्यों नहीं देता मैं
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आसां है बहुत खुद को संत घोषित कर लेना,
मौजूं ये भी कि हर कोई राम नहीं हो सकता!-
"एक बात मुझे कभी समझ नहीं आती, लड़कियों को ऐसा क्यों लगता है की उन्हें अंग्रेजी के चार अक्षरों की भूख होती है और हम लौंडो को सिर्फ तीन।"
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प्रेम जब तक प्रेम रहे, निर्बाध रहे तब तक ठीक रहता है।
जब प्रेम में सिर्फ 'हासिल करने या पा लेने' का भाव आ जाता है तो वो प्रेम न रहकर जंग बन जाती है।
जिसमें जीतकर भी हार जाना निश्चित है।
ऐसे सिचुएशन में प्रेम में प्रेम रह ही नहीं जाता। अगर आप जीत भी गये तो उसके ज्यादा दिन चलने की संभावना कम ही रहेगी.... जहाँ माँगना पड़ जाये वहाँ प्रेम होता ही नहीं है।
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अपने तिश्ना होटों को आरिज़ से मेरे दूर करो
आरिज़ पर बहती नदिया का सारा जल खारा जल है
इश्क़ में डूबे भोले लड़के इसके आगे मत जाना
इसके आगे घना दश्त है और दश्त में दलदल है
चल तुझ पर मरता हूँ मैं पर मेरी भी औकात है कुछ
एक बला जन्नत में बैठी मेरी ख़ातिर पागल है
दो चीज़ें मुझ पागल को करती हैं पागल अनहद तक
पहली तेरी चंचल आँखें दूजा तेरा काजल है-
ये माथे की बिंदिया ये कंगन ये झुमका
हमारी कहानी का हासिल भला क्या
तुम्हारी खमोशी अखरती है हमको
के बदले में मेरे कोई मिल गया क्या
~ सनकी
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मैं क्या हूँ ये धरती अम्बर हिल जाएं
गर बोसे तिरे लबों के इनको मिल जाएं
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दिल बोलता था मेरा झूटे नहीं हैं दोस्त
करना पड़ा यकीं पर सच्चे नहीं हैं दोस्त
इक़ तज़रबा है मेरा, बोले है वो मुसलसल
सच में यकीन लायक होते नहीं हैं दोस्त
ये बेफ़िज़ूल रिश्ते ढोना नहीं गंवारा
दुनिया को समझते हैं, बच्चे नहीं हैं दोस्त
वादा रहा हमारा अब हम न दिखेंगे फिर
हम झूठ-मूठ वादे करते नहीं हैं दोस्त
बेरंग सी दुनिया में फिर रंग भरेंगे हम
टूटे हैं बस ज़रा सा, हारे नहीं हैं दोस्त
जाओ तुम्हे मुबारक़ सहरा ओ समंदर भी
पर ये हमारे दिल से गहरे नहीं हैं दोस्त
हमको गुमां है हम पर, होगा तुम्हे मलाल
हम जैसे दोस्त जल्दी मिलते नहीं हैं दोस्त
~ सनकी-