मेरी प्रीत न राखी मोहन..
पल पल करुं पुकार..
दीन जानी गहो शरण मोहे..
मेरो ऐको तुम ही खेबनहार..
अब आन करो मोहे भवपार..-
क़तरा क़तरा महसूस होते हो तुम साँसों की तरह..
परस्तिश ओ बन्दगी कुछ इस तरह की है हमनें..-
मुझ को रुह को मेरी छू के निकले हो तुम,
मौन हूँ गुम हूँ नम हूँ निशां मेरा है क्या,
तुम मुझ से कह दो..-
ओ गिरिधर मैं ख़त सारे तेरे ही नाम लिखती हूँ..
उसमेँ अपनी उलझने भी तमाम लिखती हूँ..
तुम ख़तो को मेरे ख़ता से कभी पढ़ भी लिया करो..
मैं तो हर आह में तुम को ही दर्द-ए-निदान लिखती हूँ..
सिर्फ तुम को बस तुम को ही तो इक म़काम लिखती हूँ..-
हे माधव..
तुम मुझे चाहो न चाहो तुम तक...
मेरी आहें और चाहें ...
सिर्फ तुम्हीं से तुम्हीं तक...-
विरह से लथ पथ...
श्वास श्वास अधूरी उम्मीदों से व्यथित...
अनसुलझे से प्रश्नों की पथित...
पूर्ण प्रेम से आप्लावित इक अनकही रट..
हे राधामाधव आन मिलो अब...-
एक वजह ही काफी है ..
किसी से दिल लगाने के लिए..
एक वजह ही काफी है..
किसी का उमर भर हो जाने के लिए..
एक वजह ही काफी है...
बिन मोल बिक जाने के लिए...
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जो राज़ छुपाना था तुम से..
वो तुझ को ही तो बताया है..
ये दिल कत़रा कत़रा...
इक तुझ ही से तो लगाया है..-
Love is the soul of the whole..
Be the Whole n
let it dances in its Soul..-
साँसें रुक जाने से पहले..
खुद की खुद से मुलाकात कर लो..
नश्वर देह छूट जाने से पहले...
परम प्रेम से श्वासन की डोरी ..
परम के नाम कर लो..
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