ना माना ये मन,दिल को आखिर आवारा कर लिया है, देखा बस तुमको,तुम्हारे बिन गुज़ारा कर लिया है, सोचा था अब लौट फिर न जाएंगे उस रास्ते पर, देख तुम्हे उस रास्ते का रुख दुबारा कर लिया है।
फलक से मांग कर तारों को,चांद को बेचारा कर दिया है, मगर उकेर कर तस्वीर तुम्हारी,अंबर भी सारा भर दिया है, मंज़ूर तो है सब,ख्वाहिश होती कहां है इश्क़ में? पर हां! जीने का तुम्हे ,हमने सहारा कर दिया है।।
हों शब्द मेरे पास तो, शब्द को संवार दूं, हो विश्व मेरे पास तुझपे, विश्व सारा वार दूं, बल भुजाओं का तेरी, ले उड़ा वतन को ऊंचा, जी करता उस लम्हें में, सारी जिंदगी गुज़ार दूं।
गुरूर को अपने सारे , एक बिंदु पर समेटकर, देखता 'गगन ' को भी ,तो वह ' ज़मीन ' पर लेटकर, पा लिया स्वयं को 'शिवा', खोया है अहम को उसने , उड़ चला देखो वह पंछी, आसमान लपेटकर।
देखकर आइना वह ,अब मुंह फेर लेती है, जिम्मेदारियां उसे जो,हर रोज़ घेर लेती हैं, भूल ज़िंदगी अपनी,चलती है वो कांटों पर, गरीब मां बाप की वह इकलौती बेटी है।
ना पाकर कुछ भी,वे काफी कुछ पा जाते हैं, कह नहीं पाते तो बस, लिख कर जताते हैं, लेकर दुख हथेली पर, जाते हैं वो महफिल में, सुन जिसे लोग सब, वाह-वाह चिल्लाते हैं।