कौन हूँ मैं ये तू ही बतादे मुझे
मैंने तो तुझे खुदा माना है
हम दोनों में समझदार तू ही लगती है
मैंने तो तुझे खुदा माना है।
सुना है बातों की गहराई तुम गहरा समझती हो
मेरा क्या मैंने तो खुदा भी तुझे माना है।-
जिसकी विलायत से रिश्तेदारी गहरी, काफी है
उस कॉफी की एक प्याली काफी है।-
तेरी महक के इश्क़ में महकमा डूबा है
तेरे महक का ईत्र बज़ार में हमने भी ढूंढा है...-
इश्क़ है या नही इसकी ख़बर नही
तेरे ज़िक्र भर से मुस्कुराने लगे हैं
तुमसे भी ख़ुसबसूरत चेहरे होंगे ज़रूर
तेरे साथ खड़े होकर हम भी इतराने लगे है
निहारा तो ना जाने कितनो ने है
तुमसे नज़रें मिलाकर शर्माने लगे है।-
अच्छा लगा कुछ बने तुम,
इंसान तो खैर जैसे भी
अच्छा लगा कामयाब तो बने तुम-
बात इश्क़ की ही करनी है , इश्क़ कौन समझें
इश्क़ में बात ही करनी है , ये कौन समझे।-
समझ से परे है बात पर बात की गहरी सोच में हूँ
न जाने रोज़ किस खोज में हूँ।
सुकून से भरी थी ज़िन्दगी मेरे भी
पर अब रोज़ रोमांच की खोज में हूँ
मंज़िल के रास्ते से वाकिफ हूँ बरसो से
पर अब नए रास्तों की ख़ोज में हूँ
उम्रदराज़ लोगो से घिरा रहता हूँ
खुद को तजुर्बेकार करने की होड़ में हूँ,
तजुर्बों की खोज में हूँ
चाँद की रोशनी भी काफी थी किसी रोज़
रोज़ दिन भर तजेली की खोज में हूँ
"शिवा" शायर रहा किस्सो का
अब कामयाब कहानी की खोज में हूँ
समझ से परे है बात पर बात की गहरी सोच में हूँ।-
हाँ, अब एक साथ कम वक्त गुज़ारते है
पर वक़्त पर उसे ही पुकारते है ।-
रोज़-रोज़ के धक्के कही जाते बेकार नही
अहमियत तजुर्बेकार की है उम्रदराज़ की नही।-