Shivank Srivastava   (शिवांक श्रीवास्तव श्यामल)
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Joined 6 February 2018


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22 OCT 2022 AT 1:30

राख से ज़मींदोज़ तक का सफ़र ज़िंदगी।
हार जीत की कश्मकश में ज़फ़र ज़िंदगी।।

थमती सांसों में डूबता, कोई शख़्स है वो।
उखड़ती नब्ज़ के दर्मियां बेअसर ज़िंदगी।।

तुम्हें चाहने का सिलसिला ही तो था वो।
जिसकी रकम में बिकी पूरी उमर ज़िंदगी।।

मुकर्रर हो गया था, मैं तिरा हाथ थामकर।
तुझसे बिछड़ा तो बनी हम-सफ़र ज़िंदगी।।

वो महकता गुल मैं मुरझाया वक्त था उसका।
जो छूटा साथ उससे तो बनी भ्रमर ज़िंदगी।।

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19 SEP 2022 AT 15:14

वो आज नहीं है तो हर तरफ़ वही है।
मैं कैसे कह दूं कि मिरा सब सही है।।

तेरे जाने के बाद से मैं अकेला ही हूं।
कोई तेरी जगह के काबिल नही है।।

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19 SEP 2022 AT 15:13

न चाहत मरी, ना तुम मरी, न मरा मैं।
इक उम्मीद मरी, जिसका मक़बरा मैं।।

क्या ख़ूब मर्सिए पढ़े तुमने मेरी कब्र पे।
तुम फ़िर रोई, और बना मसख़रा मैं।।

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13 SEP 2022 AT 0:40

तुम मेरी जिंदगी का हसीन हादसा हो।
रब जाने क्यूं? खा-म-खां ही खफा हो।।

मैं कैसे भूल जाऊं, तुम्हें हादसा समझ।
तुम मेरे साथ न सही पर तुम्हीं वफ़ा हो।।

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29 MAY 2022 AT 11:10

कोई हसरत कोई चाहत कोई इबादत न बाक़ी रखूं।
मैं तुमसे जब भी मिलूं कोई शिक़ायत न बाकी रखूं।।

और रंग दूं तुम्हें, मैं आसमां से कोई रंग चुन कर।
यूं छुऊं तेरे होंठ, कि कोई शराफत न बाक़ी रखूं।।

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29 MAY 2022 AT 11:09

यूं मुहब्बत की ख़ुमारी पर हम हँसा नहीं करते।
ओ मुहब्बत करने से पहले हम डरा नहीं करते।।

आंख से गम छलक जाए ऐसा हो नहीं सकता।
फ़िज़ूल बहाने को आंसू, हम भरा नहीं करते।।

सोच रहा हूं तुम्हारी कोई बात दिल से लगा बैठूं।
पर अ'मूमन ऐसे बहाने हम रचा नहीं करते।।

और तुम्हारी हर बात पर शेर नज़्र कर सकता हूं।
पर बज़्म में कुर्बत के क़िस्से हम बयां नहीं करते।।

मैं कुछ ऐसा कहूं, कि तुम को मुहब्बत हो जाए।
ऐसी क़िस्मत पे यकीनन हम भरोसा नहीं करते।।

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26 MAY 2022 AT 17:28

मैं भटककर जहां पहुंचू वो ठिकाना तेरा हो ।
आशियाना तेरा हो और वो ज़माना तेरा हो ।।

यूं तो किसी रोज़ सिरहाने मौत भी बैठेगी मेरे।
पर उठ खड़ा हूंगा अगर वो जगाना तेरा हो।।

मुहब्बत में शोहरत ही तो नहीं मिलती है बस।
मुझे बदनामी कबूल अगर वो घराना तेरा हो।।

वैसे तो, मैं बड़े सख़्त मिजाज़ का बंदा हूं मियां।
पर पिघलना मज़बूरी है जो मुस्कुराना तेरा हो।।

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31 JAN 2022 AT 3:25

बहते आंसुओं में समंदर देख लिए।
मेरी आंखों ने सारे मंज़र देख लिए।।

वो रोता होगा तो कैसा लगता होगा।
ये ही सोचकर मैंने खंडर देख लिए।।

वक्त रहते ही मैं बहुतों से दूर हो गया।
जो अपनों के हाथों में ख़ंजर देख लिए।।

तुम को देखने से जब भी फ़ुर्सत मिली।
पेट भरने को मैंने, दफ़्तर देख लिए।।

कौन किसका था किसका है किसका रहेगा।
मेरी क़िस्मत ने सबके मुक़द्दर देख लिए।।— % &

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22 JAN 2022 AT 23:18

आपके साथ वही होगा,
जिसके आप हक़दार है।
जो कृत्य आपने दूसरे के साथ किए होंगे,
वही कृत्य कोई आपके साथ करेगा।
यही नियति का नियम है,
और यही कर्मा का कटू सत्य है।

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22 JAN 2022 AT 4:21

The person, you think is best suited for you, is not even half of me!— % &

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