मैं दरिया हूँ और प्यासा हूँ बरसों से,
तू बहर है तो मुझे खुद में समाता क्यों नहीं ।
मै सहरा हुँ, खड़ा हुँ एक पेड़ की मानिंद ,
तू तप रहा है तो मेरे पास आता क्यों नहीं ।
मैं रो नहीं सकता ये ख़ामी है मुझमें,
तू मुकम्मल कर मुझे रुलाता क्यों नहीं ।
मैं एक ख़्वाब में उसे अपना बना चुका हूँ ,
तू कैसा हमदर्द है,मुझे जगाता क्यों नहीं ।।
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