Shivani Shawarikar  
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Joined 17 February 2022


Joined 17 February 2022
17 MAR AT 18:46

ऐ ढलती हुई शाम
तू भी कभी ठहर कर देख जरा इस चांद रात को
यूँ हीं नहीं हजारों नजरें बस इसे तकती रह जाती हैं

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14 MAR AT 23:57

यूँ ना कहिये कुछ हमसे
ना ही यूँ चुप रहिये
ये जो नजरें देख रहीं हैं
जरा कुछ देर बस यूँ हीं देखते रहिये

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13 MAR AT 21:46

माना कि आज चांद अधूरा हैं फलक पे

मगर अब भी ये तन्हाइयों का बेहतर सहारा हैं

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11 MAR AT 23:40

कुछ वादे उम्र भर के होते हैं

महज चन्द लम्हों के नहीं

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7 MAR AT 22:14

माना बेखबर हूँ तेरे रहने के ठिकाने से

मगर अक्सर तू मेरे जेहन में ही रहता है

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27 FEB AT 19:44

वक्त बेवक्त बस देखते हैं रास्ता उनका

कि शायद कहीं दीदार हो जाये

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